“अजामिल और पाप एक दूसरे के समानार्थी शब्द बन चुके हैं यद्यपि अजामिल बाद में सर्वश्रेष्ठ गति को भी प्राप्त हुआ था। अजामिल की कथा आज के युवाओं को जरूर जानना चाहिए कि कैसे मात्र एक अश्लील दृश्य देखने से अजामिल भयानक गति को प्राप्त हुआ।
बहुत समय पहले कान्यकुब्ज देश में अजामिल नामक ब्राह्मण रहता था, अजामिल बहुत बड़ा शास्त्रज्ञ था। शील, सदगुण, विनय का वह खजाना था। अजामिल गुरु, पिता व महात्माओं की सेवा करता था। इस तरह अजामिल ब्रह्मचर्य, जितेंद्रिय रहकर पिता की सेवा कर रहा था।
एक दिन अजामिल के पिता उसे वन से फल फूल, समिधा और कुश लाने के लिए कहते हैं। वन में अजामिल ने देखा कि एक व्यक्ति मदिरा पीकर वेश्या के साथ विहार कर रहा है। अजामिल ने पाप नहीं किया केवल आंखों से देखा और काम के वशीभूत हो गया। अजामिल ने अपने मन को बहुत रोकने का प्रयास किया लेकिन नाकाम रहा और मन ही मन उस वेश्या का चिंतन करने लगा।”
“अजामिल का गणिका से प्रेम- अजामिल उस कुलटा स्त्री को रिझाने के लिए उसे सुंदर सुंदर वस्त्र, आभूषण आदि उपहार देने लगा। अजामिल ने अपने पिता की पूरी संपत्ति उस गणिका को रिझाने पर लुटा दिए। वह ब्राह्मण उसी प्रकार चेष्टा करता जिससे वह वेश्या प्रसन्न रहे।
अजामिल उस वेश्या के प्रेम में पड़कर अपनी नवविवाहिता पत्नी का परित्याग कर देता है और उस वेश्या के साथ ही उसके घर में रहने लगता है। वेश्या के पापमय अन्न का भक्षण करते करते अजामिल की मति मारी जाती है। वेश्या को प्रसन्न रखने व उसके कुटुंब का पालन करने के लिए अजामिल अपनी कुबुद्धी न्याय से अन्याय से जैसे भी जहां कहीं भी धन मिलता उठा लाता था। चोरी , जुआं आदि पापकर्म करके वह अपने परिवार का पेट पालने लगा।
संतों का आगमन — लोक परलोक का लाज छोड़कर महान पापी अजामिल अपने परिवार का पेट भरता रहा। एक दिन सायंकाल को अजामिल के दरवाजे पर किसी ने आवाज दी। अजामिल ने दरवाजा खोला और देखा कि कुछ साधू-संत उसके घर आए हैं। अजामिल ने उन सबके लिए भोजन का प्रबंध करवाया, भोजन करने के बाद संतों ने भजन कीर्तन किया। भगवान का नाम सुनकर अजामिल के आंखों से आंसू आने लगे और वह संतों के पैरों पर गिर गया।
संतों का अजामिल को उपाय बताना- अजामिल रोते हुए संतों से बोला हे महात्माओं मुझे क्षमा कर दीजिए मैं बहुत बड़ा पापी हूं। गांव वालों ने पापकर्म के कारण मुझे गांव से बाहर निकाल दिया है। संतों ने कहा यह बात तूने कल क्यों नहीं बताई हम तेरे घर पर रुकते ही नहीं।
संत तो दूसरों का कल्याण ही सोचते हैं, ऐसा विचार कर संतों ने कहा तेरे कितने संतान हैं। अजामिल बोला महाराज मेरे 9 बच्चे हैं और यह अभी गर्भवती है।
संतों ने कहा अब तेरे पुत्र होगा और उसका नाम तू नारायण रखना, जा तेरा कल्याण हो जाएगा।
अजामिल का अंत समय — संतों के आशीर्वाद से अजामिल को पुत्र की प्राप्ति हुई और उसका
“भगवान विष्णु के पार्षदों ने कहा — हे स्वामीभक्त यमदूतों बड़े खेद की बात है कि धर्मराज की सभा में अधर्म हो रहा है। अजामिल ने विवश होकर ही नारायण का नाम लिया और इसके पापों का प्रायश्चित हो गया। चोर, शराबी, मित्रद्रोही, गुरुपत्नीगामी या ऐसे लोगों का संसर्गी, राजा, पिता, स्त्री की हत्या करने वाला भी नारायण नाम लेने पर यमराज के पास नहीं जाता। इसलिए तुम लोग इसके प्राणों को नहीं ले जा सकते।
इस तरह पार्षदों ने अजामिल को मौत के मुंह से बचा लिया ।
अजामिल का उद्धार — यमदूतों और पार्षदों का वार्तालाप सुनकर अजामिल के हृदय में भक्ति का उदय हो गया। उसे अपने कर्मों पर बहुत दुःख हुआ और वह सोचने लगा कि मैंने इन्द्रियों के वश में होकर अपना ब्राहमणत्व नष्ट कर लिया। अजामिल के मन में तीव्र वैराग्य उत्पन्न हो गया और बिना समय गंवाए वह हरिद्वार चला गया। वहां भगवान का स्मरण भजन करते हुए उसने शरीर का त्याग कर दिया। मृत्यु के पश्चात वैकुंठ ले जाने के लिए चार पार्षद विमान लेकर आए। वैकुंठ की विरजा नदी में स्नान करते ही अजामिल भी वैकुंठ का पार्षद बन गया और सदा सदा के लिए वैकुंठ धाम का निवासी बन गया।”