सिंधु सभ्यता //अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है सिंधु घाटी सभ्यता के लिपि लेकिन जब पतन शुरू हुआ जलवायु परिवर्तन (सूखा) और अन्य दुख आना शुरू हो गया

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सिंधु घाटी सभ्यता

ये सभ्यता लगभग 3300-1300 ईसा पूर्वभारतीय उपमहाद्वीप की एक प्राचीन और विकसित नगरीय सभ्यता थी, जिसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि हड़प्पा इसका पहला खोजा गया स्थल था. यह सिंधु और घग्गर-हकरा (प्राचीन सरस्वती) नदियों के किनारे विकसित हुई और मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, और राखीगढ़ी जैसे बड़े शहरों के लिए प्रसिद्ध थी, जिनमें उन्नत नगर नियोजन, जल निकासी प्रणाली और सामाजिक व्यवस्था थी. यह दुनिया की सबसे विस्तृत कांस्य-युग की सभ्यताओं में से एक थी और इसका व्यापार मेसोपोटामिया और मध्य एशिया तक फैला हुआ था.

नगर नियोजन: ग्रिड पैटर्न पर आधारित सड़कें और बेहतरीन जल निकासी व्यवस्था.
प्रमुख स्थल: हड़प्पा (पाकिस्तान), मोहनजोदड़ो (पाकिस्तान), लोथल (गुजरात), धोलावीरा (गुजरात), कालीबंगा (राजस्थान), राखीगढ़ी (हरियाणा).
आर्थिक जीवन: कृषि (कपास की खेती के प्रमाण), पशुपालन, और धातु (कांस्य) का उपयोग; व्यापार मेसोपोटामिया तक.
संस्कृति: मुहरें (पशुपति मुहर), टेराकोटा कलाकृतियाँ, और आभूषण.
लिपि: अभी तक पढ़ी नहीं जा सकी है, लेकिन मुहरों पर मिलती है.
पतन: लगभग 1900 ईसा पूर्व के आसपास शुरू हुआ, जिसके कारणों में जलवायु परिवर्तन (सूखा) और अन्य पर्यावरणीय कारक शामिल थे.
महत्व:
सिंधु घाटी सभ्यता ने भारतीय उपमहाद्वीप में शहरी जीवन की नींव रखी और भविष्य की सभ्यताओं के लिए एक समृद्ध सांस्कृतिक और तकनीकी विरासत छोड़ी, जिसमें एक सुनियोजित जीवनशैली और उन्नत कला और शिल्प शामिल थे.
सिंधु नदी के किनारे विकसित होने के कारण सिंधु घाटी सभ्यता और पहले खोजे गए स्थल हड़प्पा के नाम पर हड़प्पा सभ्यता भी कहते हैं।
यह सभ्यता पाकिस्तान, भारत (गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश) और अफगानिस्तान तक फैली थी, जो इसे विश्व की सबसे विस्तृत सभ्यताओं में से एक बनाती है।
प्रमुख स्थल: हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, और राखीगढ़ी इसके प्रमुख केंद्र थे, जिनमें से कई यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल भी हैं (जैसे धोलावीरा)।
नगरीय जीवन: यह विश्व की पहली शहरी सभ्यता थी, जहाँ नगरों का सुनियोजित विकास, पक्की ईंटों का प्रयोग और बेहतरीन जल निकासी प्रणालियाँ थीं।
आर्थिक जीवन: कृषि, पशुपालन, व्यापार (मेसोपोटामिया से भी) और शिल्प (जैसे मोहरें, मिट्टी के बर्तन, मनके) मुख्य थे; कपास की खेती के प्रमाण भी मिले हैं।
धार्मिक जीवन: मातृदेवी (प्रजनन क्षमता की देवी) की पूजा, स्वास्तिक चिह्न और विभिन्न पशु-आकृतियों वाली मोहरें मिली हैं, जो उनके धार्मिक विश्वासों को दर्शाती हैं।
पतन: यह सभ्यता लगभग 1900 ईसा पूर्व के आसपास कमजोर पड़ने लगी और 1400 ईसा पूर्व तक लुप्त हो गई, जिसके कारणों में जलवायु परिवर्तन (सूखा, बाढ़) और नदियों का सूखना प्रमुख माने जाते हैं।
महत्व:
भारतीय इतिहास की नींव मानी जाती है, जिसने आगे चलकर भारतीय संस्कृति और परंपराओं को प्रभावित किया।
पुरातत्वविदों को इस सभ्यता से प्राचीन भारतीय जीवनशैली, नगर नियोजन और सामाजिक संरचना की महत्वपूर्ण जानकारी मिली।

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