आज की सच्चाई//डॉ. शिरीष राजे, मनोवैज्ञानिक ने यह अंतिम सत्य कहा है,जैसे ही पुरुष अपने बच्चों की शादी कर देता है और परिवार की आर्थिक नींव मजबूत कर देता है, परिवार में उसका वरिष्ठ और सम्मानित स्थान धीरे-धीरे समाप्त होने लगता है।

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डॉ. शिरीष राजे, मनोवैज्ञानिक ने यह अंतिम सत्य कहा है — और हर वृद्ध पुरुष को इसे पढ़कर चिंतन अवश्य करना चाहिए।

  1. पुरुष बूढ़ा होता है, जबकि स्त्री परिपक्व होती है।
  2. जैसे ही पुरुष अपने बच्चों की शादी कर देता है और परिवार की आर्थिक नींव मजबूत कर देता है, परिवार में उसका वरिष्ठ और सम्मानित स्थान धीरे-धीरे समाप्त होने लगता है।
  3. इसके बाद उसे बोझ समझा जाने लगता है — चिड़चिड़ा, गुस्सैल और अनिश्चित स्वभाव वाला बूढ़ा व्यक्ति।
  4. जिन कठोर निर्णयों से उसने कभी पत्नी और बच्चों के लिए व्यवस्था बनाई थी, आज उन्हीं निर्णयों की चीर-फाड़ होकर आलोचना होती है; एक न एक कारण से उसे दोषी ठहरा दिया जाता है। और यदि वास्तव में उससे कोई गलती हुई हो — तो भगवान ही रक्षा करे।
  5. वृद्ध स्त्री को, इसके विपरीत, बच्चों और बहुओं से सहानुभूति मिलती है — क्योंकि उसके माध्यम से अभी भी कई काम करवाने होते हैं।
  6. सही समय आने पर वह समझदारी से पति के पक्ष से बच्चों के पक्ष में चली जाती है।
  7. जब पति उम्र में बड़ा हो, तो पत्नी बहू के साथ तालमेल बना लेती है, ताकि बेटा उससे दूर न हो और उसकी देखभाल करता रहे।
  8. पुरुष ने जीवन में चाहे कितनी ही महान उपलब्धियाँ हासिल की हों — बुढ़ापे में वे किसी काम नहीं आतीं।
  9. जबकि वृद्ध स्त्री अपने पुराने पुण्यों का ब्याज जीवन भर पाती रहती है।
  10. जिन लोगों के पास पैतृक संपत्ति या खेती होती है (जिसकी बच्चों को अब भी इच्छा रहती है) उनकी स्थिति थोड़ी बेहतर होती है। लेकिन जिन्होंने भविष्य के झगड़ों से बचने के लिए समय से पहले संपत्ति बाँट दी — वे अक्सर उपरोक्त ही दुःखद स्थिति का सामना करते हैं। इसलिए संपत्ति समय से पहले न बाँटना ही बेहतर है।
  11. किसी भी अस्पताल में चले जाएँ — रिश्तेदारों की आँख देखकर ही पता चल जाता है कि भर्ती वृद्ध पुरुष है या वृद्ध स्त्री। यदि वृद्ध पुरुष हो, तो उसकी बेटी को छोड़कर शायद ही किसी की आँख नम होती है।
  12. निष्कर्ष: जैसे ही पुरुष वृद्ध होता है, उसे सीख लेना चाहिए कि दूसरों से किसी भी प्रकार की अपेक्षा न रखे। याद रखें — मनुष्य जीवन भर विद्यार्थी है। समझ लें कि इस संसार में कोई किसी का नहीं है। विरक्ति, आत्मनिर्भरता और आत्मसम्मान के साथ जीना सीखें।
  13. मेरा सुझाव: आपने दूसरों के लिए क्या-क्या किया — यह सोचना भी छोड़ दें, और इस बारे में बात करना भी बंद कर दें।
  14. प्राचीन शास्त्रों में कहीं भी ऐसा उदाहरण नहीं मिलता कि किसी स्त्री ने वानप्रस्थ या संन्यास ग्रहण किया हो।
  15. ये आश्रम केवल पुरुषों के लिए निर्धारित थे। इनके महत्व को समझें — तब ज्ञात होगा कि हमारे पूर्वज कितने दूरदर्शी थे।

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मैं कौन हूँ?

सेवानिवृत्ति के बाद,
न नौकरी,
न कोई दिनचर्या,
और घर की चुप्पी…

तभी मैंने स्वयं को पहचानना शुरू किया।

मैं कौन हूँ?

कोठियाँ बनाईं,
फार्महाउस खड़े किए,
छोटे-बड़े अनेक निवेश किए,
और आज…
चार दीवारों के भीतर सीमित हो गया हूँ।

साइकिल से मोपेड,
मोपेड से बाइक,
बाइक से कार —
गति और शान का पीछा किया,
पर अब कमरे के भीतर
धीरे-धीरे अकेले चलता हूँ।

प्रकृति मुस्कुराकर पूछती है —
“कौन हो तुम, मेरे मित्र?”
और मैं कहता हूँ,
“मैं… बस मैं।”

दुनिया के कई राज्य, देश और महाद्वीप देखे,
पर आज मेरी यात्रा
ड्रॉइंग रूम से किचन तक है।

संस्कृतियाँ-परंपराएँ समझीं,
पर अब मन
बस अपने परिवार को समझना चाहता है।

प्रकृति हँसकर फिर पूछती है —
“कौन हो तुम, मेरे मित्र?”
और मैं कहता हूँ,
“मैं… बस मैं।”

कभी जन्मदिन, सगाई, विवाह — सब धूमधाम से मनाए,
आज बस अच्छी नींद और भूख लगना ही
मेरी खुशी है।

प्रकृति पूछती है,
“कौन हो तुम?”
और मैं उत्तर देता हूँ —
“मैं… बस मैं।”

सोना-चाँदी-हीरे जवाहरात
लॉकरों में सो रहे हैं।
सूट-ब्लेज़र
अलमारियों में ठहरे हैं।

और मैं —
नर्म सूती कपड़ों में,
सरल और स्वतंत्र।

अंग्रेज़ी-फ्रेंच-हिंदी सब सीखी,
पर अब
माँ की बोली में बात करने में सुकून मिलता है।

काम के लिए अनगिनत यात्राएँ कीं,
और अब
उन फायदों-नुकसानों को
सिर्फ यादों में तौलता हूँ।

व्यवसाय चलाए,
परिवार सँवारा,
अनेकों संबंध बनाए,
और आज
सबसे सच्चा साथी
पास का पड़ोसी है।

कभी हर नियम का पालन किया,
शिक्षा के पीछे भागा —
पर अब जाकर समझ आया कि वास्तविक मायने क्या हैं।

जीवन के उतार-चढ़ाव के बाद,
शांत क्षण में
आत्मा ने कहा —

बस अब…
तैयार हो जाओ,
हे यात्री…
अंतिम यात्रा की तैयारी का समय आ गया है…

प्रकृति ने कोमलता से पूछा —
“कौन हो तुम, मेरे मित्र?”
और मैंने कहा —

“हे प्रकृति,
तुम ही मैं हो…
और मैं ही तुम हूँ।
कभी आकाश में उड़ता था,
आज धरती को नम्रता से छूता हूँ।
क्षमादान दो…
एक और अवसर दो जीने का…
पैसे कमाने की मशीन नहीं,
बल्कि एक सच्चे इंसान के रूप में —
मूल्यों के साथ,
परिवार के साथ,
प्रेम के साथ।”

🍀 सभी वरिष्ठ नागरिकों को प्रेम, शक्ति और शांति की शुभकामनाएँ।

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