भारत की सबसे प्राचीन भाषाओं में संस्कृत और तमिल को प्रमुखता दी जाती है; संस्कृत को “देव भाषा” और भाषाओं की जननी कहा जाता है, जिसके प्रमाण वेदों में हैं, वहीं तमिल को सबसे प्राचीन द्रविड़ भाषा माना जाता है और इसके साहित्यिक प्रमाण (संगम साहित्य) 2,000 साल से भी पुराने हैं, और यह आज भी जीवित है.
संस्कृत:
प्राचीनता: वैदिक संस्कृत के रूप में ऋग्वेद में इसके प्रमाण मिलते हैं, जो दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के हैं, यानी यह 3,500 से 4,000 साल पुरानी मानी जाती है.
महत्व: इसे भारतीय-यूरोपीय भाषा परिवार की सदस्य और सभी भारतीय भाषाओं की जननी कहा जाता है.
तमिल
प्राचीनता
यह द्रविड़ भाषाओं में सबसे पुरानी है और इसकी साहित्यिक परंपरा 2,000 साल से अधिक पुरानी है, जिसमें संगम साहित्य (300 ईसा पूर्व – 300 ईस्वी) शामिल है.
स्थिति
यह भारत की शास्त्रीय भाषाओं में से एक है और आज भी व्यापक रूप से बोली जाती है, खासकर तमिलनाडु, श्रीलंका और सिंगापुर में.
अन्य प्राचीन भाषाएँ (पाली और प्राकृत): पाली और प्राकृत
संस्कृत के बाद पाली और प्राकृत भाषाएँ आती हैं, जो मध्यकालीन इंडो-आर्यन भाषाएँ हैं, जिनमें बौद्ध धर्म के महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे गए हैं.
संक्षेप में, संस्कृत एक अत्यंत प्राचीन भाषा है जो धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों की भाषा रही है, जबकि तमिल एक प्राचीन द्रविड़ भाषा है जिसका भाषाई और साहित्यिक इतिहास बहुत गहरा है और यह आज भी प्रचलन में है.
रामायण, महाभारत)’ को ताड़ के पत्तों पर लिखा गया, जो सदियों तक ज्ञान के भंडार रहे;
खासकर ओडिशा और दक्षिण भारत में इस परंपरा का लंबा इतिहास है, जहाँ धार्मिक ग्रंथ और ज्योतिषीय ज्ञान सबसे पहले लिखे गए और अब भी संरक्षित हैं.

तलपत्र पर लिखे गए प्रमुख विषय:
धार्मिक ग्रंथ और शास्त्र
वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत और अन्य पौराणिक कथाएँ.
ज्योतिष: नाड़ी ज्योतिष के ग्रंथ, जो सिद्धों द्वारा लिखे गए माने जाते हैं.
इतिहास और साहित्य: राजाओं का इतिहास, कविताएँ और अन्य साहित्यिक रचनाएँ.
कला (तलपत्र चित्र)
पांडुलिपियों से विकसित होकर, बाद में इन पर चित्रकारी भी होने लगी.
मुख्य बिंदु:
प्राचीन माध्यम: कागज के आविष्कार से पहले, ताड़ के पत्ते (ताड़पत्र) भारत में लिखने के मुख्य माध्यम थे.
स्थायित्व: ये पांडुलिपियाँ बहुत टिकाऊ होती थीं और सदियों तक ज्ञान को सहेजती रहीं.
ओडिशा और दक्षिण भारत: ओडिशा में ‘पोथी चित्र’ और दक्षिण भारत (जैसे तंजावुर) में कई महत्वपूर्ण पांडुलिपियाँ आज भी मिलती हैं.
संक्षेप में, तलपत्र पर पहले लिखे गए ग्रंथ किसी एक विशिष्ट पुस्तक के बजाय, प्राचीन भारत के संपूर्ण ज्ञान भंडार का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसमें धार्मिक, ऐतिहासिक और साहित्यिक सामग्री शामिल है.
















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