राजस्थान जैसलमेर किले के निर्माण के पीछे एक संत का आशीर्वाद माना जाता है।
राजा जैसल को एक संत (सूफी) ने बताया कि यह जगह त्रिकूट पहाड़ी पर है और भगवान कृष्ण के आशीर्वाद से सुरक्षित रहेगी, जिसके बाद उन्होंने इस किले का निर्माण शुरू किया।
इस भविष्यवाणी के कारण ही यह किला इतना खास और रहस्यमयी बन गया, जहाँ आज भी हजारों लोग रहते हैं और यह एक जीवंत शहर जैसा लगता है। जैसेलमेर किला जो समय के साथ राजस्थान की गौरवशाली धरोहर में शुमार हो गया।
जैसलमेर किले की विरासत – भविष्यवाणी, युद्ध और चुनौतियाँ
जैसलमेर के स्वर्ण किले से जुड़ी एक प्राचीन भविष्यवाणी प्रचलित है, जिसमें कहा गया था कि यह किला “ढाई युद्धों” का साक्षी बनेगा — और यह भविष्यवाणी समय के साथ सच साबित हुई।
पहला युद्ध
1290 के दशक में, जब भारत पर दिल्ली सल्तनत का प्रभुत्व बढ़ रहा था, जैसलमेर के राजा रावल जैत सिंह ने अलाउद्दीन खिलजी के कारवां पर हमला कर दिया। यह हमला उनकी रणनीतिक योजना का हिस्सा था, लेकिन इसका परिणाम विनाशकारी सिद्ध हुआ।

खिलजी ने प्रतिशोध में जैसलमेर पर चढ़ाई कर दी।
कई महीनों तक चला घेरा, और जब शत्रु किले की दीवारों तक पहुँच गया, तब किले की महिलाओं ने सम्मान की रक्षा हेतु सामूहिक जौहर किया — जिसमें उन्होंने अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।
इस घटना ने जैसलमेर को वीरांगनाओं की भूमि के रूप में अमर कर दिया।
दूसरा युद्ध
1530 ई. में, अफगानी आक्रमणकारी अमीर अली ने जैसलमेर पर हमला किया। यह हमला अचानक और तीव्र था, जिससे नगरवासी और राजपरिवार आश्चर्यचकित रह गए। इस बार किले की महिलाएँ जौहर जैसी रस्म के लिए भी तैयार नहीं हो सकीं। आनन-फानन में उन्हें जीवन त्यागना पड़ा — और यह त्रासदी किले के इतिहास का एक गहरा और करुण अध्याय बन गई।
आधा युद्ध
1541 में, जब मुगल सम्राट हुमायूँ ने जैसलमेर की ओर रुख किया, तो राजपरिवार ने कूटनीति का सहारा लिया। रावल लूणकरण ने हुमायूँ के पुत्र अकबर से वैवाहिक संबंध जोड़कर युद्ध टाल दिया। यही घटना “आधे युद्ध” के रूप में जानी जाती है — जहाँ तलवारें नहीं, रिश्तों ने इतिहास की दिशा बदली।
वैभव से संघर्ष तक – किले की बदलती किस्मत
अपनी सांस्कृतिक और स्थापत्य समृद्धि के चरम पर, जैसलमेर किला शानदार महलों, हवेलियों और मंदिरों का केंद्र था।
ऐतिहासिक धरोहर है। यह किला रेत के सुनहरे धोरों के बीच खड़ा है, जो अपनी वास्तुकला और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। हालांकि, इस किले का दौरा करने का सबसे अच्छा समय बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि जैसलमेर का मौसम अक्सर कठोर और चुनौतीपूर्ण होता है।

गर्मियों के महीनों में, यानी अप्रैल से जून तक, यहाँ का तापमान 45°C तक पहुंच सकता है, जो किले के घूमने के लिए काफी असुविधाजनक हो सकता है। इसके अलावा, गर्मियों में यहाँ की तेज धूप और उमस से यात्रा करना काफी थका देने वाला हो सकता है। इसलिए, यदि आप जैसलमेर किला देखना चाहते हैं तो गर्मियों में यात्रा से बचें।
सर्दियों के महीनों में, अक्टूबर से मार्च तक, जैसलमेर का मौसम बहुत ही सुहावना होता है। इस समय यहाँ का तापमान 15°C से 25°C के बीच रहता है, जिससे किले के ऐतिहासिक महत्व को देखने और उसकी वास्तुकला को समझने में आसानी होती है। दिन में हल्की गर्मी रहती है और शाम होते-होते ठंडक बढ़ जाती है, जो यात्रा को और भी आरामदायक बना देती है।
इसलिए, जैसलमेर किले की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय सर्दी के महीने ही होते हैं, जब मौसम अनुकूल और यात्रा करने के लिए सुखद होता है।
जैसलमेर किला दर्शन समय
दिन दर्शन समय
सोमवार सुबह 9:00 बजे – शाम 6:00 बजे
मंगलवार सुबह 9:00 बजे – शाम 6:00 बजे
बुधवार सुबह 9:00 बजे – शाम 6:00 बजे
गुरुवार सुबह 9:00 बजे – शाम 6:00 बजे
शुक्रवार सुबह 9:00 बजे – शाम 6:00 बजे
शनिवार सुबह 9:00 बजे – शाम 6:00 बजे
रविवार सुबह 9:00 बजे – शाम 6:00 बजे”












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