लिंगराज मंदिर ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित एक प्राचीन और भव्य शिव मंदिर है, जिसे 11वीं सदी में सोमवंशी राजा ययाति केसरी ने बनवाया था; यह मंदिर भगवान शिव (हर) और भगवान विष्णु (हरि) को एक साथ समर्पित (हरिहर) है, जिसमें शैलigram के रूप में विष्णु की पूजा होती है, और यह कलिंग वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है, जिसकी जटिल नक्काशी और 180 फीट ऊँची मीनार इसे एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल बनाती है, जहाँ गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है।
मुख्य बिंदु:
स्थान: भुवनेश्वर, ओडिशा।
देवता: भगवान शिव (त्रिभुवनेश्वर) और भगवान विष्णु (हरिहर)।
निर्माण: 11वीं शताब्दी, सोमवंशी राजा ययाति केसरी द्वारा।

वास्तुकला: कलिंग शैली, जिसमें विमान (मुख्य मीनार), जगमोहन, नटमंदिर और भोग-मंडप शामिल हैं।
विशेषता: शिव और विष्णु का संगम (हरिहर), स्वयंभू शिवलिंग, जटिल नक्काशी, और गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित (केवल देखने के लिए प्लेटफार्म है)।
धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व:
यह मंदिर शैव और वैष्णव परंपराओं का संगम दिखाता है, जहाँ शिव के हृदय में विष्णु का वास माना जाता है।
इसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है और यह भुवनेश्वर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।
यह शिवरात्रि और अन्य त्योहारों पर भक्तों से भरा रहता है।

वास्तुकला विवरण:
शिवलिंग: 8 फीट व्यास और 8 इंच ऊँचा ग्रेनाइट पत्थर का स्वयंभू शिवलिंग, जिसमें चांदी का शालिग्राम (विष्णु) स्थापित है।
मीनार (विमान): लगभग 180 फीट ऊँची, कलिंग शैली का बेहतरीन उदाहरण।
संरचना: मंदिर परिसर में कई छोटे-बड़े मंदिर और मंडप हैं।
यह मंदिर आस्था, इतिहास और वास्तुकला का अद्भुत संगम है, जो भुवनेश्वर को ‘मंदिरों का शहर’ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
















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