भारतीय पौराणिक कथाओं, विशेषकर महाभारत और कालिदास के नाटक ‘अभिज्ञानशाकुंतलम्’ का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें वह ऋषि विश्वामित्र और स्वर्ग की अप्सरा मेनका की पुत्री हैं, जिनका पालन-पोषण कण्व ऋषि ने किया और बाद में उनका विवाह राजा दुष्यंत से हुआ, जिससे भरत का जन्म हुआ।
जन्म और परित्याग
विश्वामित्र और मेनका:
इंद्र ने तपस्यारत ऋषि विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के लिए अप्सरा मेनका को भेजा।
शकुंतला का जन्म
मेनका ने विश्वामित्र को मोहित किया और उनके मिलन से शकुंतला का जन्म हुआ।
अकेला छोड़ना
अपना उद्देश्य पूरा होने के बाद, मेनका शकुंतला को मालिनी नदी के तट पर छोड़कर स्वर्ग लौट गई, जहाँ शकुंतला को अकेला पाया गया।
कण्व ऋषि द्वारा पालन-पोषण:
नामकरण: ऋषि कण्व को शकुंतला पक्षियों (शकुंतस) से घिरी हुई मिली, इसलिए उन्होंने उसका नाम शकुंतला रखा।
आश्रम में जीवन: कण्व ऋषि ने शकुंतला का पालन-पोषण किया और उसने अपना बचपन आश्रम में जानवरों और प्रकृति के बीच बिताया, एक सुंदर युवती के रूप में बड़ी हुई।
दुष्यंत से विवाह और भरत का जन्म:
दुष्यंत का आगमन: एक दिन राजा दुष्यंत शिकार करते हुए कण्व के आश्रम पहुँचे और शकुंतला को देखकर मोहित हो गए।
गंधर्व विवाह: दुष्यंत और शकुंतला ने < गंधर्व विवाह कर लिया, जिसके बाद दुष्यंत ने राजधानी जाकर शकुंतला को लाने का वचन दिया।
दुर्वासा का शाप और वियोग: दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण दुष्यंत शकुंतला को भूल गए और उसे पहचान नहीं पाए, जिससे शकुंतला को बहुत कष्ट हुआ।
भरत का जन्म: मेनका ने शकुंतला को कश्यप ऋषि के आश्रम में रखा, जहाँ उसने भरत को जन्म दिया।
पुनर्मिलन: एक मछुआरे द्वारा दुष्यंत को मिली अंगूठी के कारण दुष्यंत को शकुंतला और अपने पुत्र की याद आई, जिसके बाद उन्होंने शकुंतला और भरत को सम्मानपूर्वक महल ले गए
















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