भारतीय शादी सिर्फ दो लोगों का मिलन नहीं होती, यह एक ऐसा पवित्र बंधन है जिसमें दो परिवार, दो जीवन और दो सोचें एक-दूसरे से जुड़ती हैं।
आज हम शादियों में 7 फेरे देखते हैं, लेकिन हमारे पुराने ग्रंथ जैसे गृह्यसूत्र और धर्मशास्त्र के अनुसार विवाह में सिर्फ 4 फेरे ही मुख्य माने गए थे। कई पारंपरिक समुदाय आज भी 4 फेरे ही लेते हैं।
इन चार फेरों का सीधा संबंध जीवन के चार सबसे जरूरी सिद्धांतों से है—धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।
पहला फेरा: धर्म (सही रास्ते पर चलने का वचन)
पहले फेरे में दूल्हा-दुल्हन यह वादा करते हैं कि वे जीवनभर एक-दूसरे के साथ मिलकर सही रास्ते पर चलेंगे,सच्चाई, ईमानदारी और परिवार की भलाई को हमेशा सबसे आगे रखेंगे। इस फेरे में पत्नी, पति के आगे चलती है, जो इस बात का प्रतीक है कि वह उसके साथ मिलकर इस पवित्र जीवन की शुरुआत कर रही है
दूसरा फेरा: अर्थ (घर-परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी)
यह फेरा जीवन की आर्थिक स्थिरता का प्रतीक है। इसमें दोनों यह संकल्प लेते हैं कि वे मिलकर घर की जिम्मेदारियाँ निभाएंगे और समृद्धि लाएंगे। इसमें पत्नी आगे चलती है, जिसे यह माना गया है कि वह घर की खुशहाली और धन-संपन्नता की मुख्य संरक्षक होती है।
तीसरा फेरा: काम (प्रेम, सम्मान और भावनात्मक जुड़ाव)
तीसरे फेरे का मतलब है एक-दूसरे के प्रति प्यार, सम्मान और परिवार को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी। इस फेरे में भी पत्नी आगे रहती है, क्योंकि परिवार को संभालने और रिश्तों को मजबूत बनाने में उसकी भूमिका बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है।
चौथा फेरा: मोक्ष (आध्यात्मिक उन्नति और जीवन का उद्देश्य)
चौथा फेरा सबसे गहरा माना जाता है। यह आत्मिक विकास और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का वचन है। इस फेरे से पति आगे चलना शुरू करता है, जिससे यह दर्शाया जाता है कि आध्यात्मिक दिशा देने की जिम्मेदारी वह निभाएगा और पत्नी उसके साथ इस राह पर आगे बढ़ेगी।
तो फिर 7 फेरे क्यों?
समय के साथ विभिन्न क्षेत्रों और समुदायों में विवाह की परंपराओं में बदलाव आया। कई ग्रंथों और परंपराओं में अतिरिक्त तीन वचन जोड़कर 7 फेरे किए जाने लगे, जिन्हें आज व्यापक रूप से अपनाया जाता है।
लेकिन मूल वैदिक परंपरा में विवाह के 4 फेरे ही मुख्य थे, जो जीवन के चार पुरुषार्थों पर आधारित हैं।
source: patrika.com
















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