यह भगवत्-प्राप्ति का मौसम है, आज भगवत्-कृपा की वर्षा हो रही है, और उनके दिव्य प्रेम की बाढ़ आई हुई है —
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मैं कोई मज़ाक नहीं कर रहा। बड़ी गंभीरता से कह रहा हूँ कि अगले सात दिन भगवत्-प्राप्ति हेतु साधना के लिये अति श्रेष्ठ हैं। होलिका-दहन वाली रात्रि मंत्र-सिद्धि और हरिःभजन के लिए सर्वश्रेष्ठ है। आपको स्वयं के कल्याण के लिये, या जन-कल्याण के लिए कोई भी साधना इस अवधि में करनी है तो वह अभी इसी समय से आरंभ कर दीजिये। आपको सिद्धि मिलेगी। मेरे पास समय नहीं है, मैं उपलब्ध नहीं हूँ। हम सब पर इस समय ईश्वर की बड़ी कृपा है। उनकी भक्ति की वर्षा हो रही है। जिधर भी देखता हूँ, भगवान श्रीकृष्ण ही दृष्टिगत हो रहे हैं।
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“सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे !
तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम: !!”
भावार्थ – सच्चिदानंद के रूप में वे जो इस विश्व की उत्पत्ति के हेतु हैं, उन श्रीकृष्ण को हम नमन करते हैं। वे हमारे तीनों तापों (आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक) का विनाश करेंगे।
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खान-पान को शुद्ध रखें, किसी भी तरह का नशा न करें, और अभक्ष्य भक्षण न करें। मनसा-वाचा-कर्मणा किसी की हानि न करें, पर-निंदा से बचें, और अनावश्यक वार्तालाप भी न करें। किसी भी परिस्थिति में कुसंग का त्याग करें, और हर समय ईश्वर की स्मृति बनाये रखें। आपका कल्याण होगा।

ॐ कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने, प्रणतः क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः॥”
ॐ सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे, तापत्रय विनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम:॥
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प्रातःकाल उठते ही मेरुदण्ड को उन्नत, ठुड्डी को भूमि के समानान्तर रखते हुए अपने ध्यान के आसन पर आसीन हो जाइये। इससे पूर्व दस-पंद्रह मिनट तक कुछ हठयोग और प्राणायाम कीजिये। फिर कम से कम दो घंटों तक भगवान को कर्ता बनाकर भगवान के चरण-कमलों का ध्यान करें। सायंकाल या रात्री में शयन से पूर्व इसी प्रक्रिया को दोहराएँ। दिन में कम से कम चार घंटे तो परमात्मा को दीजिये। हर समय उनका स्मरण कीजिये। निमित्त मात्र होकर साक्षीभाव से, भगवान को कर्ता बनाकर ही दिन में सारे कार्य कीजिये। अपना ध्यान भी भगवान स्वयं ही कर रहे हैं। हम एक साक्षीमात्र हैं। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१० मार्च २०२५