सच्ची स्वतन्त्रता
पांच विकारों से जब तक, नहीं पाएंगे आजादी
रोक ना पाएंगे हम तब तक, भारत की बर्बादी
जब से हम सब हुए हैं, पांच विकारों के गुलाम
तब से हमारी दैवी संस्कृति, होने लगी बदनाम
छल कपट को बनाया, हमने उन्नति का आधार
कर्ज में डूब गया है भारत, धन ले लेकर उधार
मन बुद्धि की स्वच्छता भी, इतनी हो गई मलीन
स्वार्थ फैला नस नस में, जैसे मिट्टी कण महीन
लोभ लालच का कीड़ा, फैलाता जाए भ्रष्टाचार
इक दूजे से करने लगे, हम स्वार्थयुक्त व्यवहार
अपने लालच के वश, भूल गए देश का विकास
कठिन हो रही करनी, माँ भारती की पूरी आस
देखो हमारे मन के विचार, हो गए इतने संकीर्ण
अपने स्वार्थवश करते, अपनों का हृदय विदीर्ण
दुःख देकर किसी को, मन कभी नहीं पछताता
दिल हुए पत्थर के, इसलिए रोना भी नहीं आता
धोखा देकर अपनों को, ख़ुशी का अनुभव करते
पाप करते समय हम, भगवान से भी नहीं डरते
किए जा रहे पापकर्म, जैसे हो अपना अधिकार
भ्रष्ट हो गए हैं इतने, कि भूल गए सब शिष्टाचार
कैसे पाएं खोई हुई, अपनी संस्कृति की प्रतिष्ठा
कैसे जागे अपने मन में, इक दूजे के प्रति निष्ठा
नहीं रहेंगे सुख सदा, जो पाए हों छल कपट से
ऐसे गुम होंगे वो जैसे, दृश्य हटता है चित्रपट से
एक ही बात ज्ञान की है, समझो इसे गहराई से
सच्चा सुख मिलेगा, केवल दिल की सच्चाई से
सप्त गुणों से सजी हुई, हम आत्माएं सतोप्रधान
यही स्मृति रखकर, हो जाएं विकारों से अनजान
विकारमुक्त जीवन बनाता, सुख शान्ति सम्पन्न
दुःख सारे मिट जाते, खुशियां होती सदा उत्पन्न
विकारी दुनिया का ना सताए, जब कोई संस्कार
सबका हितकारी हो जब, अपना प्रत्येक विचार
पाने की आशा छोड़कर, देते जाएं सबको प्यार
आत्मशुद्धि अपनाकर हम, मिटाएं सभी विकार
विकारी जीवन से जब, पूरी मुक्ति मिल जाएगी
तभी हमारी माँ भारती, सच्ची स्वतन्त्रता पाएगी
ॐ शान्ति
मुकेश कुमार मोदी, बीकानेर, राजस्थान
मोबाइल नम्बर 9460641092