विवाह संस्कार
अपनै बिबाह को बिबाह की तरह कीजिए
इंदौर शहर के जैन,अग्रवाल समुदाय ने पिछले रविवार को एक अच्छा निर्णय लिया कि यदि किसी भी जैन,अग्रवाल समुदाय की शादी में 6 से अधिक व्यंजन होते हैं, तो उस शादी में दूल्हा और दुल्हन को केवल आशीर्वाद बस ही दिया जाना चाहिए, लेकिन उस समारोह मै आयोजित भोजन को उनके द्वारा खाया नहीं जाएगा, जैन व अग्रवाल समाज ने भी उक्त निर्णय को अपनी समाज लागू करने का निर्णय लिया है। इसके साथ ही शादी के कार्ड ना छपवाकर केवल व्हाट्सएप और फोन के जरिए ही निमंत्रण भी देनै का निर्णय लिया है
विशेष निर्णय यह भी है कि विवाह पूर्व संगीत नाच-गान और विवाह समारोह कार्य-क्रम मै भी संगीत, आर्केस्ट्रा कार्य-क्रम आयोजन पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है
पर कब बदलेंगे हम, शादी में हम आजकल लोगौ को दिखावे के चक्कर मै अनाप-शनाप खर्च करने लगे हैं, शादी की खुशियां मनाने के लिए 40% परिवार कर्ज लेकर तक भी शादी-ब्याह मै दिखावा करते हैं, अब तो हमें जरूर बदलना होगा।
अब समाज को विवाह संस्कार को पुरातनकालीन बुजुर्गौ की निभायी जानेवाली कम खर्च मै विनाश तामझाम कै बिना दिखावा किये विवाह समारोह आयोजन की उन सादी व्यवस्थाऔ उन परम्परानुसार बास्तविक तरीके सै उनके अनुसार किया जानेवाला विवाह समारोह को उस काल के सादगीपूर्ण होनै वाले विवाह संस्कार में ही अब फिर से उसी अनुसार हमै भी बदलना चाहिए।
कुछ दिन पहले कोरोना वायरस के कारण सरकार ने शादियों और कार्यक्रमों में खर्च व उपस्थिति तक सीमित कर दी थी, लेकिन लोग इसे भूल गए और फिर सै बर्बादी लाखों रुपये खर्च करने लगे,हम आजकल उनको भी बुलाते है जिनको आपकै विवाह समारोह नेग दस्तूर, आदि से कोई मतलब ही नही होता बस 100 ₹ ,या 150₹ या 200 ₹ के लिफाफे को लेकर वह लोग आपके काउन्टर पर देकर अपनै समस्त परिवार सहित उपस्थित होकर भरपैट मनपसंद व्यॅजनौ का लजीज व तरह-तरह के पकवानौ व भोजन को भरपैट ग्रहण करना ,व खा पीकर तुरंत ही चलते बनना उद्देश्य बस होता है आपके कार्य-क्रमौ से उनको कोई मतलब नही होता।
हम अनावश्यक रूप से दस से पचास साठ लाखों रुपये शादी ब्याह मै बर्बाद ही तो कर रहे हैं और कर्ज में डूब रहे हैं। हमें अब बदलना होगा।
विवाह एक समारोह नहीं बल्कि एक ‘संस्कार’ है। 16 संस्कारों में से एक संस्कार होता है इसे है अब समझना चाहिए इस सॅस्कार को आप एक सॅस्कार की तरह ही निभाईये जो इस सॅस्कार मै शामिल होकर कार्यक्रमौ मै सहभागी व मौजूद रह सके,बस आप उनको ही बुलाईये,जितना हो सके विवाह समारोह आयोजन की उन सभी व्यवस्थाऔ मै अपने हिन्दु भाईयो के दुकानदार और व्यवस्थापक उन हमारे हिन्दूऔ के पास से ही सभी विवाह समारोह कार्य-क्रम की व्यवस्था आप बनाईये,।
चाहे कितनी भी बड़ी अरबौ खरबौ तक खर्च करनै वाली शादी क्यों न हो, लोग उसे आठ दिन बाद भूल ही जाते हैं व उसमै भी ढेर कमियाॅ निकालते है। इतनी बड़ी शादी करने पर आज तक किसी का भी नाम रोशन नही हुआ ना कोई सम्मान जनक पुरस्कार नहीं मिला।
दूल्हा-दुल्हन को हमेशा बाद मै भी उपयोग करनेवाली पोशाक पहनना चाहिए।
) खाने-पीने की भरमार, दिखावापूर्ण साज श्रृंगार,बेफिजूल का तामझाम आडम्बर पर अनाप-शनाप खर्च करनै का तरीका बंद करें और लाइटिंग, आतिशबाजी, डी,जे,रथ, मॅहगै बैन्ड, लान की लाखौ की बेमतलब की सजावट का होनेवाला फिजूल खर्च कम करें,पुरातनकाल मै हिन्दूऔ का विवाह समारोह कार्य-क्रम दिन मै आयोजित हुआ करता था वस आप अपनै पूर्वजो की तरह ही अब दिन मै ही अपना विवाह समारोह कार्य-क्रम आयोजित कीजिए ,और उस बेफिजूल बेमतलब बेकार मै होनै वाले खर्च की उस बची राशि से वर-वधू की भविष्य की प्रगति में योगदान दें।
हल्दी के कार्यक्रम में मेहंदी, वैदिक विधि, भीड़ भाड से बचना चाहिए। स्वागत समारोह में सादगी लानी चाहिए।
*शादी के कार्ड की कीमत समझै और शादी का कार्ड व्हाट्सएप के माध्यम से भेजें और कार्ड भेजने के बाद संबंधित व्यक्ति को फोन करके जिद करने के लिए आमंत्रित करें, शादी से दो दिन पहले दोबारा याद दिलाने के लिए फोन करें।
किसी भी जाति और धर्म की अच्छी बातें स्वीकार करनी चाहिए।
आइये सुधारों की शुरुआत स्वयं से करें!
सिर्फ पढ़ो मत…!
आप भी सोचिये…!
💯%यह समय की मांग है।
अनिल पंडित*