क्या है ‘रक्षा बंधन’ का मतलब? क्यों मनाते हैं ये पर्व? जानिए इतिहास
: Sun, Aug 3, 2025
भाई-बहन के प्रेम का पर्व रक्षा बंधन का इंतजार हर भाई-बहन को बहुत ही शिद्दत से होता है। इस बार ये त्योहार 9 अगस्त को है। हर साल सावन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाए जाने वाले इस त्योहार पर बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र यानी राखी बांधती हैं और उसकी लंबी उम्र की कामना करती हैं तो वहीं भाई भी बहन की रक्षा का वचन देता है और उपहार देता है।
पर क्या आपने कभी सोचा है कि रक्षाबंधन का इतिहास क्या है और हम इसे क्यों मनाते हैं और रक्षा बंधन का मतलब क्या होता है?
Raksha Bandhan का मतलब क्या है?
‘रक्षा’ यानी सुरक्षा और ‘बंधन’ यानी बंधन या वचन। इसका अर्थ है – एक ऐसा वचन जो किसी की रक्षा करने के लिए दिया गया हो। राखी केवल धागा नहीं होती, बल्कि यह एक भावनात्मक डोर होती है जो भाई-बहन के रिश्ते को और मजबूत करती है,ये धागा सूचक है प्रेम और भरोसे का, जो कि बहुत ही पावन है।
इस पर्व का जिक्र इतिहास में भी है और इसके बारे में कई कथाएं पढ़ने को मिलती हैं…
द्रौपदी और कृष्ण की कथा
सबसे लोकप्रिय कथा है द्रौपदी और कृष्ण की, महाभारत के अनुसार, एक बार प्रभु कृष्ण की उंगली में चोट लग गई थी और खून बहने लगा। यह देखकर द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। तब कृष्ण ने भावुक होकर वचन दिया कि वह हर हाल में द्रौपदी की रक्षा करेंगे। चीरहरण के समय कृष्ण ने अपना वचन निभाया और द्रौपदी की लाज बचाई।
राजा बलि और माता लक्ष्मी
एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु राजा बलि की भक्ति से प्रसन्न होकर उसके यहां रहने लगे, तब माता लक्ष्मी चिंतित हुईं। उन्होंने ब्राह्मण वेश धारण कर बलि से रक्षा सूत्र बांधा और उसे अपना भाई बना लिया। फिर लक्ष्मी ने विष्णु भगवान को अपने साथ ले जाने की विनती की, जिस पर राजा बलि को हां बोलना पड़ा था।
रानी कर्णावती और हुमायूं की कथा
इतिहास में एक उल्लेख मिलता है कि चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने मुगल शासक हुमायूं को राखी भेजी थी, ताकि वह गुजरात के बहादुर शाह से अपनी रक्षा कर सके। हुमायूं ने राखी के सम्मान में युद्ध में उसकी सहायता की।
Disclaimer: यह सूचना इंटरनेट पर उपलब्ध मान्यताओं और सूचनाओं पर आधारित है। लेख से संबंधित किसी भी इनपुट या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है इसलिए किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले कृपया किसी जानकार ज्योतिष या पंडित की राय जरूर लें।
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