वृंदावन यदि राधा का धाम है तो मीरा ने भी इसी वृंदावन में 15 साल तक रहकर अपनी साधना से प्रभु श्रीकृष्ण के प्रति अपना अगाध प्रेम जताया था। मीरा बाई वर्ष 1524 में भगवान कृष्ण की तलाश में वृंदावन आईं थी। वे यहां वर्ष 1539 तक रहीं। निधिवन राज मंदिर के समीप गोविंद बाग मोहल्ला स्थित मीराबाई के प्राचीन मंदिर के सुरम्य वातावरण में पहुंचते ही भक्तों के हृदय में भक्ति फूट पड़ती है।
चारों ओर हरियाली से आच्छादित मंदिर के बीच में चलते फव्वारों से सादगी बरसती है। मंदिर प्रांगण में दाईं ओर उनकी भजन कुटिया श्याम के रंग में रंगी है। भजन करतीं मीरा के चित्र भक्तों को उनके भजन गुनगुनाने को मजबूर कर देते हैं। गर्भगृह में कृष्ण, राधा और मीरा का विग्रह है। उनके समीप मीरा के शालिग्राम का विग्रह और राणा ने मीरा को मारने के लिए फूलों की टोकरी में जो सर्प भेजा था, वह भी शालिग्राम के रूप में परिवर्तित होकर दर्शन दे रहे हैं

एक रोचक कथा के अनुसार जब मीराबाई वृन्दावन आईं थीं तो वे एक संत के दर्शन करने के लिए गईं, लेकिन संत ने यह कहकर उनसे मिलने से मना कर दिया कि वे स्त्रियों से नहीं मिलते हैं। इस पर मीराबाई ने कहा कि वृन्दावन में श्रीकृष्ण ही एक मात्र पुरुष हैं। बाकी सब गोपी भाव से श्री कृष्ण की भक्ति करते हैं। मीरा के इस कथन का सार गीता में भी मिलता है। श्री कृष्ण कहते हैं, यह संसार प्रकृति अर्थात स्त्री है और मैं परमात्मा ही एक मात्र पुरुष हूं। मैं ही प्रकृति में बीज की स्थापना करके सृष्टि चक्र का संचालन करता हूं। इसलिए, स्त्री और पुरुष का भेद करना मूर्खता है। मृत्यु के बाद स्त्री हो अथवा पुरुष सभी लिंग भेद से मुक्त हो जाते हैं।
मीराबाई के इस तर्क से उन संत को भावनात्मक अनुभूति हुई और वे इसी जगह पर मीराबाई से भेंट करने आए। मंदिर सेवायत प्रद्युम्न प्रताप सिंह बताते हैं कि पांच सौ साल पहले चित्तौड़गढ़ की महारानी मीराबाई ने खुद ही इस स्थल का चयन किया था। इसके एक ओर ठा. बांके बिहारी की प्राकट्य स्थली निधिवन राज मंदिर है, दूसरी ओर राधा दामोदर और तीसरी ओर कल-कल बहती यमुना नदी। पूर्व में इसका नाम गोविंद बाग था। मीरा ने इसी जगह पर अपनी भजनस्थली बनाई।
Source :Story Jansatta
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