महाराजा अग्रसेन का इतिहास एक समाज सुधारक, गणतंत्र के संस्थापक और अहिंसा के पुजारी के रूप में वर्णित है, जिन्होंने समाजवाद की नींव रखी और अग्रोहा की स्थापना की। द्वापर युग के अंत में जन्मे, वे सूर्यवंशी महाराजा वल्लभसेन के पुत्र थे और एक ऐसा राज्य स्थापित किया जहाँ “एक ईंट और एक रुपया” की नीति द्वारा हर नए बसने वाले का स्वागत किया जाता था, जिससे आर्थिक समानता को बढ़ावा मिलता था। उन्होंने यज्ञों में पशु-बलि का विरोध किया औरCoconut(नारियल) को आहुति का माध्यम बताया।
जीवन और शासन:
जन्म और वंश: महाराजा अग्रसेन का जन्म द्वापर युग के अंतिम चरण में हुआ था और वे भगवान श्री राम के वंशज थे। उनके पिता महाराज वल्लभसेन थे और उनका राज्य प्रतापनगर था, जो वर्तमान राजस्थान और हरियाणा के बीच स्थित था।
अग्रोहा की स्थापना:
महाराजा अग्रसेन ने अग्रोहा नामक एक नए राज्य की स्थापना की, जो हरियाणा में स्थित एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान है।
समाजवादी व्यवस्था: उन्होंने एक अनूठी समाजवादी व्यवस्था लागू की, जहाँ बाहर से आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को समुदाय द्वारा एक ईंट और एक रुपया दिया जाता था, ताकि वह नया घर बना सके और व्यापार शुरू कर सके।
अहिंसा और नैतिकता: महाराजा अग्रसेन अहिंसा के पुजारी थे। उन्होंने यज्ञों में पशुओं की बलि रोककर नारियल को आहुति का साधन बनाया।
सामाजिक और धार्मिक योगदान:
सामाजिक समानता:
उन्होंने समाज में ऊंच-नीच के भेद को मिटाने का प्रयास किया, जिससे उनके शासन में सभी लोग समान थे।
अग्रवाल समाज के संस्थापक: अग्रवाल समाज के संस्थापक के रूप में, उन्होंने अपनी न्यायप्रियता, दानशीलता और एकता के संदेश से समाज को प्रभावित किया।
मानवता का आदर्श:
महाराजा अग्रसेन का आदर्श जीवन और उनके द्वारा स्थापित समाजवादी व्यवस्था आज भी मानवता के लिए एक प्रेरणा है।
राजा उग्रसेन के पुत्र कंस थे, और उन्होंने ही उग्रसेन को बलपूर्वक गद्दी से हटाकर मथुरा पर कब्ज़ा कर लिया था. कंस के अत्याचारों से तंग आकर भगवान श्री कृष्ण ने उनका वध किया और बाद में पुन: उग्रसेन को मथुरा का राजा बनाया. कंस, देवकी का पुत्र और कृष्ण का मामा था.
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