महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद जयंती//बनारस के एक छोटे से गांव लमही में 31 जुलाई 1880 को मुंशी प्रेमचंद का जन्म एक सामान्य से परिवार में हुआ था। मुंशी प्रेमचंद 7 वर्ष के थे तो एक गंभीर बीमारी के चलते इनकी माता का देहांत हो गया और इस प्रकार इनके संघर्षपूर्ण जीवन की शुरुआत हुई

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महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद // जयंती

जन्म : 31 जुलाई 1880
मृत्यु : 08 अक्टूबर 1936

बनारस के एक छोटे से गांव लमही में 31 जुलाई 1880 को मुंशी प्रेमचंद का जन्म एक सामान्य से परिवार में हुआ था। मुंशी प्रेमचंद 7 वर्ष के थे तो एक गंभीर बीमारी के चलते इनकी माता का देहांत हो गया और इस प्रकार इनके संघर्षपूर्ण जीवन की शुरुआत हुई। इनकी माता की मृत्यु के उपरांत इनके पिता ने दूसरा विवाह किया परंतु सौतेली माता ने इन्हें कभी पूर्ण रूप से नहीं अपनाया।

मुंशी प्रेमचंद का विवाह पिता के दबाव के चलते 15 वर्ष की कम आयु में हो गया था। इनके पिता ने इनका विवाह इनके मर्जी के खिलाफ एक ऐसी कन्या से किया जो इन्हें पसंद नहीं थी। इसके साथ ही इनकी पत्नी का व्यवहार इनके प्रति हमेशा झगड़ालू रहा।

इनके पिता अजायब राय की मृत्यु के पश्चात् परिवार की पूरी जिम्मेदारी मुंशी प्रेमचंद के ऊपर आ गई और इसी बीच इन्होंने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया और कुछ समय गुजरने के बाद इन्होंने अपनी पसंद से सन् 1906 में लगभग 25 वर्ष की उम्र में एक विधवा स्त्री शिवरानी देवी से विवाह किया एवं एक सुखी वैवाहिक जीवन की शुरुआत की।

उपन्यास लिखने की उनकी शैली राजाओं और रानियों की काल्पनिक कहानियों के रूप में शुरू हुई। लेकिन जैसे-जैसे वे अपने आस-पास हो रही घटनाओं के प्रति अधिक जागरूक होते गए। उन्होंने सामाजिक समस्याओं पर लिखना शुरू किया और उनके उपन्यासों ने सामाजिक चेतना और जिम्मेदारी की भावना को जगाने का काम किया था। उन्होंने जीवन की वास्तविकताओं और एक अशांत समाज में आम आदमी द्वारा सामना की जाने वाली विभिन्न समस्याओं के बारे में बहुत ही वेबाकी से लिखा।

हिन्दी विश्व की सबसे समृद्ध भाषाओं में से एक है जिस प्रकार से गहने तथा आभूषण एक स्त्री के सौंदर्य में वृद्धि कर देते हैं उसी प्रकार हिन्दी को सुंदर सरल एवं हृदय की गहराइयों में ले जाने का काम हिन्दी साहित्य के महान कवियों और साहित्यकारों ने किया है। हिन्दी के ऐसे ही एक महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद थे जिन्होंने हिन्दी साहित्य में अपनी अमिट छाप छोड़ी।

यह अत्यंत दुखद है कि इस तरह की क्षमता और दृष्टि के लेखक को अपने जीवन काल वैसी सराहना और तवज्जो नहीं मिली जिसके वे हकदार थे। उन्हें जीवित रहते हुए वास्तव में सराहा नहीं गया था। उन्हें आर्थिक रूप से बहुत बुरा समय देखना पड़ा। उन्होंने जीवन भर आर्थिक रूप से संघर्ष किया और पूरी तरह से गरीबी और दिन-प्रतिदिन सकल वित्तीय संकट में रहे। वह स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से भी पीड़ित थे।

वे जीवन के अंत तक लिखते रहे। जब उनकी मृत्यु हुई तो वे वास्तव में मंगलसूत्र नामक इस उपन्यास को लिखने के बीच में थे, जो आज तक अधूरा है। भारत के इस महान साहित्यकार ने 8 अक्टूबर 1936 को अंतिम सांस ली। और वे हिन्दी साहित्य में अमर हो गए।

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