जुलाई 2006 में मुंबई बम धमाकों में 18 साल से जेल में बंद 12 लोगों को बरी कर दिया गया है। एक दिन भी ये ज़मानत पर बाहर नहीं आए। मकोका कोर्ट ने फांसी और उम्र क़ैद की सज़ा दी लेकिन बांबे हाई कोर्ट की बेंच ने 75 बार सुनवाई की और पाया कि पुलिस ने 44, 500 पन्नों का जो दस्तावेज़ तैयार किया है, उनमें से एक भी ऐसा नहीं है जिससे इनका दोष साबित किया जा सके-वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार

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जुलाई 2006 में मुंबई बम धमाकों में 18 साल से जेल में बंद 12 लोगों को बरी कर दिया गया है। एक दिन भी ये ज़मानत पर बाहर नहीं आए। मकोका कोर्ट ने फांसी और उम्र क़ैद की सज़ा दी लेकिन बांबे हाई कोर्ट की बेंच ने 75 बार सुनवाई की और पाया कि पुलिस ने 44, 500 पन्नों का जो दस्तावेज़ तैयार किया है, उनमें से एक भी ऐसा नहीं है जिससे इनका दोष साबित किया जा सके। यह फैसला उस दिन आया जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने ED से कहा है कि आप अपना राजनीतिक इस्तेमाल क्यों होने देते हैं? क्या पुलिस वही काम नहीं कर रही है। आतंकवाद को लेकर माहौल बना दिया जाता है और फिर उसके हिसाब से गिरफ्तारी होने लग जाती है। माहौल के दबाव में ज़मानत तक नहीं मिलती है। मुंबई धमाके के केस में जिन्हेें बरी किया गया है उनका जीवन अब कभी वापस नहीं हो सकेगा। इसके अपराधी कौन हैं, वे केवल इन 12 लोगों के अपराधी नहीं हैं, बल्कि देश की राजनीति को ग़लत दिशा में मोड़ने के भी अपराधी है। इस वीडियो को देखना चाहिए और इस केस के फैसले पर लंबे समय तक बहस होनी चाहिए-वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार की रिपोर्ट देखिए

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