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जब दुखों की बारिश होती है तो सब भाग जाते हैं, एक अकाल पुरुख भगवान ही दया की छत्रछाया लेकर आपके साथ खड़ा होता है।
अगर कोई भिखारी किसी के घर पर जाकर दरवाजे को खटखटाएगा ही नहीं तो घर का मालिक उसे कैसे कुछ दे सकता है?
ठीक इसी प्रकार अगर हम भजन-सिमरन न करें और परमात्मा की दया-मेहर पाने की उम्मीद लगाये रखें तो हम उनकी दया के लायक नहीं बन सकते अगर हम वास्तव में सतगुरु की दया-मेहर पाना चाहते हैं तो हमें रोज़-रोज़ भजन-नाम-सिमरन रूपी दरवाज़ा खटखटाना ही पड़ेगा।
जीवन में केवल दो ही वास्तविक धन है
समय और सांसे”
और दोनों ही निश्चित और सीमित है,
समझदारी से खर्च करें।

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