11 अक्टूबर
लोकनायक जयप्रकाश नारायण // जयंती
जन्म : 11 अक्टूबर 1902
मृत्यु : 08 अक्टूबर 1979
11 अक्टूबर, 1902 को जन्मे जय प्रकाश नारायण भारतीय स्वतंत्रता सेनानी एवं राजनेता थे. उन्हें सन् 1970 में इंदिरा गाँधी के विरुद्ध विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है. सन् 1974 में “सिंहासन खाली करो जनता आती है” के नारे के साथ वे मैदान में उतरे तो सारा देश उनके पीछे चल पड़ा, जैसे किसी संत महात्मा के पीछे चल रहा हो.
वे समाज-सेवक थे, जिन्हें “लोकनायक” के नाम से भी जाना जाता है. 1999 में मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया. समाज सेवा के लिए सन् 1965 में मैगससे पुरस्कार प्रदान किया गया था. पटना के हवाईअड्डे का नाम उनके नाम पर रखा गया है तथा दिल्ली सरकार का सबसे बड़ा अस्पताल ‘लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल’ भी उनके नाम पर है.
उनका समस्त जीवन यात्रा संघर्ष तथा साधना से भरपूर रहा है. उन्होंने भारतीय राजनीति को ही नहीं बल्कि आम जनजीवन को एक नई दिशा दी. वे समूचे भारत में ग्राम स्वराज्य का सपना देखते थे और उसे आकार देने के लिए अथक प्रयास भी किये.
पाँच जून से पहले छात्रों-युवकों की कुछ तात्कालिक माँगें थीं, जिन्हें कोई भी सरकार जिद न करती तो आसानी से मान सकती थी. लेकिन पाँच जून को जे पी ने घोषणा की –
भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना, शिक्षा में क्रांति लाना, आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकती; क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज है. वे तभी पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए और सम्पूर्ण व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रांति ‘सम्पूर्ण क्रांति’ आवश्यक है.
इंदिरा गाँधी को पदच्युत करने के लिए उन्होंने सम्पूर्ण क्रांति नामक आन्दोलन चलाया. लोकनायक ने कहा कि सम्पूर्ण क्रांति में सात क्रांतियाँ शामिल हैं. सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, राजनैतिक, आर्थिक, शैक्षणिक एवं आध्यात्मिक क्रांति. सम्पूर्ण क्रांति की तपिश इतनी भयानक थी कि केन्द्र में कांग्रेस को सत्ता से हाथ धोना पड़ा. जे पी के नाम से प्रसिद्ध जयप्रकाश नारायण घर-घर में क्रांति का पर्याय बन चुके थे. लाल मुनि चौबे, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, राम विलास पासवान या फिर सुशील मोदी, आज के सभी नेता उसी छात्र युवा वाहिनी का हिस्सा थे.
वे अत्यंत समर्पित जननायक और मानवतावादी चिंतक तो थे ही इसके साथ-साथ उनकी छवि अत्यंत शालीन और मर्यादित सार्वजनिक जीवन जीने वाले व्यक्ति की भी है. उनका समाजवाद का नारा आज भी हर तरफ गूँज रहा है. भले ही उनके नारे पर राजनीति करने वाले उनके सिद्धांतों को भूल रहे हों, क्योंकि, उन्होंने सम्पूर्ण क्रान्ति का नारा एवं आन्दोलन जिन उद्देश्यों एवं बुराइयों को समाप्त करने के लिए किया था, वे सारी बुराइयाँ इन राजनीतिक दलों एवं उन के नेताओं में व्याप्त हैं.
वे अत्यंत भावुक थे लेकिन महान क्रांतिकारी भी थे. वे संयम, अनुशासन और मर्यादा के पक्षधर थे. इस लिए उन्होंने कभी भी मर्यादा की सीमा का उल्लंघन नहीं किया. विषम परिस्थितियों में भी कभी उन्होंने अपना अध्ययन नहीं छोड़ा और आर्थिक तंगी ने भी उन का मनोबल नहीं तोड़ा. यह उन के किसी भी कार्य की प्रतिबद्धता को ही निरूपित करता था, उन के दृढ़ विशवास को परिलक्षित करता है.
उनका सबसे बड़ा आदर्श था जिसने भारतीय जनजीवन को गहराई से प्रेरित किया, वह था उनमें सत्ता की लालसा नहीं थी. वे स्वयं को सत्ता से दूर रखकर देशहित में सहमति की तलाश करते रहे. वे देश की राजनीति की भावी दिशाओं को, बड़ी ही गहराई से महसूस करते थे. यही कारण है कि राजनीति में शुचिता एवं पवित्रता की निरन्तर वकालत करते रहे.
जीवन भर संघर्ष करने वाले और इसी संघर्ष की आग में तपकर कुन्दन की तरह दमकते हुए समाज के सामने आदर्श बन जाने वाले प्रेरणा स्त्रोत थे लोक नायक जय प्रकाश नारायण, जो अपने त्यागमय जीवन के कारण मृत्यु से पहले ही प्रातः स्मरणीय बन गये थे.
उन्होंने अपने विचारों, दर्शन तथा व्यक्तित्व से देश की दिशा तय की थी. हृदय की बीमारी और मधुमेह के कारण जयप्रकाश का निधन पटना में उनके निवास स्थान पर 8 अक्टूबर,1979 को हुआ.
ऐसे देश-भक्त, समाजसुधारक लोकनायक जयप्रकाश नारायण जी की जयंती पर उन्हें कोटि-कोटी नमन.