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बिजयानंद पटनायक (5 मार्च 1916 – 17 अप्रैल 1997) एक भारतीय राजनीतिज्ञ और विमान चालक थे। वे 1961 से 1963 तक और 1990 से 1995 तक ओडिशा राज्य के तीसरे मुख्यमंत्री रहे। वे 1979 से 1980 और 1977 से 1979 तक भारत के 14वें इस्पात और खान तथा पहले कोयला केंद्रीय मंत्री भी रहे और 1977 से 1985 तक केंद्रपाड़ा से लोकसभा के सदस्य रहे
पटनायक ने कलिंगा ट्यूब्स, कलिंगा एयरलाइंस, कलिंगा आयरन वर्क, कलिंगा रिफ्रैक्टरीज और कलिंगा नामक दैनिक ओडिया समाचार पत्र की स्थापना की। 1951 में उन्होंने लोगों के बीच विज्ञान और प्रौद्योगिकी के लोकप्रियकरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय कलिंगा पुरस्कार की स्थापना की और इसकी जिम्मेदारी यूनेस्को को सौंपी।

इतिहास। यह हवाई अड्डा 17 अप्रैल 1962 को ओडिशा के लोगों को समर्पित किया गया था, जो राज्य का पहला वाणिज्यिक हवाई अड्डा बन गया । हवाई अड्डे में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए क्रमशः दो सक्रिय अनुसूचित यात्री टर्मिनल, टर्मिनल 1 और 2 हैं।
आधुनिक ओडिशा के प्रमुख वास्तुकारों में से एक बिजयानंद पटनायक को लोकप्रिय रूप से बीजू पटनायक के नाम से जाना जाता है। उनका जन्म 5 मार्च 1916 को कटक के एक सम्मानित ब्रह्मो परिवार में लक्ष्मीनारायण पटनायक और आशालता पटनायक के घर हुआ था, हालाँकि लक्ष्मीनारायण मूल रूप से गंजम के अस्का से थे।

साल 1947 में इंडोनेशिया को फिर से अपने कब्जे में लेने के लिए डच साम्राज्य ने हमला बोल दिया था। इंडोनेशियाई नेता दुनिया को अपनी बात पहुंचाना चाहते थे लेकिन उन्हें बंधक बना लिया गया था। इस दौरान एक भारतीय राजनेता ने उन्हें बचाने के लिए सीक्रेट मिशन चलाया था।
इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो इस समय भारत की यात्रा पर हैं, जहां वे नई दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि होंगे। भारत और इंडोनेशिया की दोस्ती बहुत गहरी है। दोनों ने लगभग एक ही समय में साम्राज्यवादी ताकतों से आजादी की लड़ाई लड़ी थी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इंडोनेशिया के स्वतंत्रता संग्राम में भारत ने अहम भूमिका निभाई थी। भारत के प्रसिद्ध राजनेता ने देश के लिए गुप्त मिशन चलाया था। इस राजनेता का नाम बीजू पटनायक था।
साल 1947 में भारत के स्वतंत्रता संग्राम के नेता जवाहरलाल नेहरू ने पटनायक से एक मिशन को अंजाम देने को कहा। यह मिशन इंडोनेशिया के दो नेताओं प्रधानमंत्री सुतन सजाहिर और तत्कालीन उपराष्ट्रपति मोहम्मद हट्टा को सुरक्षित निकालने के बारे में था। उस समय इंडोनेशिया डच साम्राज्य से अपनी आजादी की लड़ाई लड़ रहा था”

लेकिन भारत आने के लिए इन नेताओं को इंडोनेशिया से निकाला जाना था। इसके लिए नेहरू ने बीजू पटनायक से संपर्क किया। उस समय पटनायक ओडिशा की राज्य विधानसभा के लिए चुने गए थे, लेकिन वे एक कुशल पायलट भी थे। पटनायक ने 1930 के दशक में रॉयल इंडियन एयर फोर्स ज्वाइन की थी। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने आपूर्ति और निकासी मिशनों के लिए उड़ान भरकर जापानियों से लड़ने में ब्रिटिशों की मदद की
लेकिन यह इतना आसान नहीं था। डच साम्राज्य इंडोनेशिया के हवाई और समुद्री मार्गों को नियंत्रित करता था। इसलिए पटनायक ने डकोटा विमान लिया और वहां उड़ान भरी। डच अधिकारियों ने विमान को मार गिराने की धमकी दी, लेकिन पटनायक हवाई सुरक्षा को चकमा देते हुए 21 जुलाई 1947 को जकार्ता में लैंड हुए। उन्होंने सजाहिर और हट्टा को लेकर सिंगापुर की उड़ान भरी और वहां से भारत आए।”
साल 1950 में इंडोनेशियाई सरकार ने पटनायक को इंडोनेशिया की मानद नागरिकता और ‘भूमि पुत्र’ सम्मान दिया, जो किसी विदेशी को शायद ही कभी दिया जाता है। इंडोनेशियाई वायुसेना के जनसंपर्क विभाग और मीडिया निदेशालय से प्रकाशित एक किताब के अनुसार, पटनायक ने 1947 में पायलटों को प्रशिक्षित करने लिए दो सप्ताह से अधिक समय तक इंडोनेशिया की यात्रा की थी।”
पूर्व जीवन बीजू पटनायक का जन्म गंजाम के भंज नगर में कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके माता पिता का नाम लक्ष्मीनारायण और आशालता पटनायक था। शिक्षा कटक के रावेनशॉ कॉलेज में हुआ

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