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कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान एक-दूसरे को पसंद करते थे. जयचंद ने संयोगिता का स्वयंवर रचाया था, लेकिन पृथ्वीराज चौहान को पसंद नहीं करने के कारण द्वेषवश उनकी एक प्रतिमा द्वारपाल के रूप में लगा दी. पृथ्वीराज ने संयोगिता को स्वयंवर से ही उठा लिया और दोनों ने गंधर्व विवाह किया.



पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी के बारे में जानें
पिता के दुश्मन से प्यार कर बैठी थीं कन्नौज की राजकुमारी संयोगिता, आखिर कैसे शुरू हुई यह प्रेम कहानी।


राजा पृथ्वीराज चौहान का नाम भारत के महावीरों में शुमार हैं। उनकी वीर गाथाएं आज भी राजस्थान के गलियारों में गूंजती हैं, यही वजह है कि पृथ्वीराज चौहान हमारे देश के इतिहास का चर्चित नाम हैं। भारत की कई ऐतिहासिक किताबों में पृथ्वीराज चौहान के बारे में आपको पढ़ने के लिए मिल जाएगा। यह तो सभी जानते है कि पृथ्वीराज चौहान एक वीर योद्धा थे, मगर यह बहुत कम लोग जाते हैं कि वो प्रेमी भी थे। उनकी प्रेम कहानी के चर्चे राजस्थान की लोक कथाओं और किताबों में देखने को मिल जाते हैं।

आज के इस आर्टिकल में हम आपको वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान और रानी संयोगिता की प्रेम कहानी के बारे में बताएंगे, जो किसी फिल्म से कम नहीं थी। इस प्रेम कहानी में आपको रोमांच और इमोशन दोनों ही भरपूर मात्रा में मिलेंगे, तो देर किस बात की आइए जानते हैं इस ऐतिहासिक लव स्टोरी के बारे में-

कौन थीं रानी संयोगिता-

पृथ्वी राज चौहान के बारे में तो ज्यादातर लोग जानते हैं, मगर संयोगिता के बार में इतिहास ज्यादा जानकारी नहीं दी गई है। आपको बता दें कि संयोगिता कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी थीं, जिनकी खूबसूरती के चर्चे दूर-दूर तक हुआ करते थे। उन्हें बचपन में कान्तिमती और संजुक्ता जैसे नामों से भी बुलाया जाता था।

ऐसे हुई थी मोहब्बत की शुरुआत-
माना जाता है कि एक बार राजा जयचंद के दरबार में नामी चित्रकार आया था। वह चित्रकार अपने साथ कई राजाओं और रानियों की तस्वीरें लेकर आया था।
“राज महल में स्वयंवर का आयोजन किया गया। संयोगिता अपने पिता के मूर्ति लगाने के फैसले से बेहद नाराज थीं। जब स्वयंवर शुरू हुआ तो संयोगिता से किसी एक राजा को चुनने के लिए कहा गया, तब उन्होंने स्वयंवर करने से इनकार कर दिया। लेकिन जब उन्हें पता चला कि पृथ्वीराज चौहान नहीं आए, तो उन्होंने दरवाजे पर लगी उनकी मूर्ति को ही वरमाला पहनाने के फैसला लिया।

बन गई फिल्मी कहानी-
जैसे ही संयोगिता मूर्ति पहनाने के लिए आगे बढ़ीं, उसी दौरान पृथ्वीराज वहां पहुंच गए। यह देखकर संयोगिता बेहद खुश हुईं और उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के गले में वरमाला पहना दी। इसी के साथ दोनों का स्वयंवर पूरा हो गया। पृथ्वीराज चौहान स्वयंवर से सीधे दिल्ली चले आए”

“माना जाता है कि राजा जयचंद हमेशा से ही पृथ्वीराज चौहान से दुश्मनी रखते थे। जिस कारण उनसे बदला लेने के लिए राजा ने अफगान के मुस्लिम शासक मोहम्मद गोरी को पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था। इतिहास में हम पाते हैं कि मोहम्मद गौरी और पृथ्वीराज चौहान के बीच 17 युद्ध होते हैं। जिनमें 16 बार युद्ध में गोरी को हार का सामना करना पड़ता है, वहीं 17वें युद्ध में गोरी जीत जाता है और राजा पृथ्वीराज चौहान को बंदी बना लेता है। लेकिन अपनी सूझबूझ की मदद से पृथ्वीराज चौहान गोरी की हत्या करने में कामयाब होते हैं।

तो यह थी पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की अमर प्रेम कहानी।
Pragati Pandey

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