दुष्यंत चंद्रवंशी राजा थे। वहीं, शकुंतला ऋषि विश्वामित्र और स्वर्ग की अप्सरा मेनका की पुत्री थीं। मगर ऋषि के श्राप की वजह से उन्हें वियोग झेलना पड़ा। पढ़ें राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कहानी
एक बार राजा दुष्यंत जंगल में शिकार करते हुए ऋषि कण्व की कुटिया के पास पहुंचे। उन्होंने वहां शकुंतला को देखा तो उसके रूप से मोहित हो गए। उस वक्त ऋषि कण्व लंबी यात्रा पर गए थे। शकुंतला ने राजा का आदर-सत्कार किया। दुष्यंत को शकुंतला की मेजबानी बहुत अच्छी लगी। उन्होंने शकुंतला के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया। एक राजा को अपने प्रेम में पड़ते देख शकुंतला भी शर्मा गईं।
उन्होंने दुष्यंत का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।इसके बाद दोनों ने गंधर्व विवाह किया और संबंध बनाए। चूंकि ऋषि कण्व कुटिया में नहीं थे, इसलिए शकुंतला ने कहा कि वह अपने पिता तुल्य ऋषि की अनुमति के बिना उनके साथ नहीं आएंगी। इसके बाद राजा दुष्यंत ने शकुंतला को ऋषि कण्व के आने के बाद राजमहल में आने के लिए कहकर वहां से चल दिए। शकुंतला गर्भवती हो गईं। जैसे-जैसे दिन बीतते गए वह हर पल सिर्फ दुष्यंत के ख्यालों में खोई रहतीं।
जब ऋषि दुर्वासा ने शकुंतला को दिया श्राप
एक बार महर्षि दुर्वासा ऋषि कण्व से मिलने उनकी कुटिया में आए। शकुंतला वहां अकेली थी। ऋषि दुर्वासा ने शकुंतला को आवाज दी, लेकिन वह दुष्यंत के ख्यालों में खोई हुई थीं। शकुंतला ने ऋषि दुर्वासा की पुकार नहीं सुनी। उन्हें इसे अपना अपमान समझा। पौराणिक काल में ऋषि दुर्वासा अपने क्रोध के लिए जाने जाते थे। उन्होंने शकुंतला को श्राप दे दिया कि जिस व्यक्ति के ख्वाब में डूबकर ऋषि का अपमान किया है, एक दिन वह उसे भूल जाएगा।
जब दुष्यंत से मिलने पहुंचीं शकुंतला
ऋषि कण्व जब यात्रा से लौटे तो शकुंतला ने गंदर्व विवाह की बात उन्हें बताई। ऋषि ने शकुंतला से अपने पति के घर जाने की आज्ञा दे दी। गर्भवती शकुंतला अपने पति दुष्यंत से मिलने के लिए हस्तिनापुर की ओर निकल पड़ी। रास्ते में नदी पार करते समय शकुंतला की सोने की अंगूठी पानी में गिर गई। ये अंगूठी दुष्यंत ने शकुंतला को प्रेम की निशानी के तौर पर दी थी। पानी में गिरी उस अंगूठी को एक मछली ने निगल लिया।

दूसरी ओर, ऋषि दुर्वासा के श्राप का असर हुआ और राजा दुष्यंत शकुंतला को पूरी तरह भूल गया। शकुंतला जब महल पहुंचीं तो दुष्यंत ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया। शकुंतला ने अपने साथ बिताए सभी पल बताए और ये भी कहा कि उनकी कोख में दुष्यंत की संतान पल रही है। मगर राजा दुष्यंत को कुछ याद नहीं आया और शकुंतला को महल से बाहर निकाल दिया।

इस बात से दुखी शकुंतला सबकुछ छोड़कर एकांत जंगल में चली गईं। उन्होंने वहीं पर एक छोटी सी कुटिया बनाई और रहने लगी। शकुंतला ने एक तेजस्वी बालक को जन्म दिया, जिसका नाम भरत रखा गया।
जब दुष्यंत के पास पहुंची अंगूठी
कई सालों बाद जिस मछली के पेट में शकुंतला की अंगूठी थी, वो एक दिन मछुआरे के जाल में फंस गई। मछुआरे ने जब मछली को काटा तो सोने की चमचमाती अंगूठी को देखकर दंग रह गया। उस पर राजवंश की मुहर थी, इसलिए वो अंगूठी लेकर सीधा राजा दुष्यंत के पास पहुंच गया। राजा ने जब अंगूठी को देखा तो पूरी कहानी उन्हें याद आ गई। दुष्यंत को शकुंतला के साथ बिताया एक-एक पल याद आया। फिर उन्हें अपनी भूल पर पछतावा हुआ।

शकुंतला की खोज में निकले दुष्यंत
राजा दुष्यंत सबकुछ छोड़कर जंगल की ओर शकुंतला की खोज में निकल पड़े। कुछ दिनों तक दुष्यंत ने शकुंतला की तलाश की, लेकिन उन्हें कुछ नहीं मिला। एक दिन वे इंद्र से मिलकर हस्तिनापुर लौट रहे थे तब बीच में ऋषि कश्यप का आश्रम नजर आया। राजा दुष्यंत ऋषि के दर्शन करने के लिए वहां रुक गए।
तभी उन्हें वहां एक बालक नजर आया। वह शेर के साथ खेल रहा था। राजा दुष्यंत एक बच्चे को शेर के साथ खेलता देख अचंभे में पड़ गए। उनकी उत्सुकता बढ़ गई। उन्होंने बच्चे को उठाने के लिए जैसे ही हाथ आगे किया, तभी एक महिला की आवाज आई। महिला ने राजा से कहा कि इस बालक को मत उठाइए, इसके हाथ में काला धागा बंधा है। अगर आपने उसे उठाया तो धागा सांप में बदल जाएगा और आपको डस लेगा।
दुष्यंत से रहा न गया। उन्होंने बच्चे को गोद में उठाया और वो काला धागा टूटकर गिर गया। दरअसल, वो बच्चा और कोई नहीं बल्कि शकुंतला का पुत्र भरत था। भरत को वरदान मिला था कि जिस दिन उसके पिता उसे गोद में लेंगे काला धागा टूटकर गिर जाएगा। महिला को पता चल गया कि राजा भरत के पिता हैं। वह दौड़कर शकुंतला के पास गई और सारी बात बताई।
शकुंतला और दुष्यंत का हुआ पुनर्मिलन
जब शकुंतला को राजा दुष्यंत की खबर मिली तो दौड़कर वहां चली आई। जैसे ही दुष्यंत ने शकुंतला को देखा, उसे पहचान लिया। दुष्यंत ने शकुंतला से माफी मांगी और उन्हें अपने साथ हस्तिनापुर चलने के लिए कहा। शकुंतला ने भी उन्हें माफ कर दिया और भरत के साथ महल की ओर चल दी। इस तरह शकुंतला और दुष्यंत का फिर से मिलन हुआ और दोनों अपने राज्य में खुशहाल जिंदगी जीने लगे। आगे चलकर भरत ने सत्ता संभाली और अपने पराक्रम का परचम दिया। कहा जाता है कि हमारे देश का नाम भारत इसी सम्राट भरत के नाम पर पड़ा था।
Source :Live Hindustan