कहते हैं कि द्रौपदी अपने पिछले जन्म में बहुत सुन्दर युवती थी। सर्वगुण संपन्न होने के कारण उसे योग्य वर नहीं मिल रहा था इसलिए उसने भगवान शंकर की तपस्या की और तब शंकरजी प्रकट हुए। उस समय द्रौपदी ने हड़बड़ाहट में पांच बार वर मांगे इसलिए उसे शिवजी के वरदान के कारण इस जन्म में पांच पति प्राप्त हुए।
“पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास मिला था। इस दौरान पांचों पांडव एक कुम्हार के घर में रहा करते थे और भिक्षाटन के माध्यम से अपना जीवन-यापन करते थे। ऐसे में भिक्षाटन के दौरान उन्हें द्रौपदी के स्वयंवर की सूचना मिली।
एक यंत्र में बड़ी-सी मछली घूम रही थी। उसकी आंख में तीर मारना था और वह भी तैलपात्र में उसकी परछाई देखकर। यह भी कि एक नहीं, पूरे पांच तीर मारना थे। अर्जुन ने यह प्रतियोगिता जीत ली। तब जरासंध, शल्य, शिशुपाल तथा दुर्योधन, दुःशासन आदि कौरव भी उपस्थित थे। उस दौरान बहुत विवाद हुआ क्योंकि पांचों पांडव ब्राह्मणवेश धारण कर पहुंचे थे। लेकिन श्रीकृष्ण के दखल से आखिर द्रौपदी का विवाह हो गया।”
“पांचों पांडवों से उसका विवाह कैसे हुआ या पांचों पांडवों की वह पत्नी कैसे बन गई यह बहुत लंबा किस्सा है। कहते हैं कि द्रौपदी अपने पिछले जन्म में बहुत सुन्दर युवती थी।
सर्वगुण संपन्न होने के कारण उसे योग्य वर नहीं मिल रहा था इसलिए उसने भगवान शंकर की तपस्या की और तब शंकरजी प्रकट हुए। उस समय द्रौपदी ने हड़बड़ाहट में पांच बार वर मांगे इसलिए उसे शिवजी के वरदान के कारण इस जन्म में पांच पति प्राप्त हुए। जब भगवान शिव ने द्रौपदी को पांच पति प्राप्त होने का वरदान दिया था. तब वह भी ये जानते थे कि उसे अपने पांचों पतियों के साथ पत्नी धर्म निभाने में समस्या होगी, इसीलिए उन्होंने द्रोपदी को ये वरदान भी दिया कि वह प्रतिदिन कन्या भाव यानी कौमार्य को प्राप्त कर लेगी। इसलिए द्रौपदी अपने पांचों पतियों को कन्या भाव में ही प्राप्त हुई थी।
हालांकि कहा जाता है कि संतान को जन्म देने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उसे ये सुझाव दिया कि हर साल वह पांडवों में से किसी एक के साथ ही समय व्यतीत करे। साथ ही जिस समय वह अपने कक्ष में किसी एक पांडव के साथ हो तो उनके कक्ष में कोई और पांडव प्रवेश न करें। यदि कोई पांडव ऐसा गलती से भी कर लेता है तो उसे एक वर्ष का देश निकाला भुगतना होगा।
माना जाता है कि द्रौपदी, जो पांचों पांडवों की पत्नी थीं, 1-1 साल के समय-अंतराल के लिए हर पांडव के साथ रहती थी। उस समय किसी दूसरे पांडव को द्रौपदी के आवास में घुसने की अनुमति नहीं थी। इस नियम को तोड़ने वाले को 1 साल तक देश से बाहर रहने का दंड था। एक बार यह दंड अर्जुन को भगुतना भी पड़ा था।