आजकलगांवमेंभाईचारेकी_कमी!
आजकल #गांवो में #प्रेम खत्म सा हो गया है। गांव अब सिर्फ #कहानियों में अच्छे लगते हैं। इसके अनेकों कारण हैं। पहले गांवों की सादगी, प्राकृतिक सौंदर्य, और सामुदायिक भावना लोगों को बहुत आकर्षक करती करती थी। लेकिन गांव अब तेजी से बदल रहे हैं। वहां शहरों जैसी सुविधाओं उपलब्ध है। गांव की पुरानी तस्वीरे जैसे, छान और कोल्हू की छतें, कच्चे मैंडी ओबारे, गैत- बाड़ा, पाटोल, कुएं बावड़ी, सार्वजनिक बगीचियां सभी तो हैं।
लोगों के आपसी रिश्तों की तो पूछो ही मत, रिश्तों में खटास का आलम चरम पर है,लेकिन इसके भी की कारण हैं।
पुराने समय गांवों में #भाईचारा, #संयुक्त_परिवार की प्रथा से मजबूती लिए हुए था जहां पूरा परिवार एक साथ रहता था। इस वजह से आपसी सहयोग, समर्थन और सामाजिक एकता बनी रहती थी,।
साझाखेतीऔर_संसाधन, पशुपालन और अन्य कामों में एक दूसरे की मदद की जाती थी। सभी ग्रामीण एक-दूसरे पर निर्भर होते थे, जिससे आपसी संबंध मजबूत होते थे।
एक दूसरे पर #परस्पर_निर्भरता अधिक निर्भर रहती थी। #बाजार और #सुविधाओं की कमी थी। सभी त्यौहार, शादी-ब्याह और अन्य सामाजिक समारोहों में पूरा गांव शामिल होता था।
गांव में पटेल और पंचायती व्यवस्था से #सामूहिकनिर्णयप्रक्रिया और उनका निर्णय #बिना पक्षपात के होता था, लेकिन आजकल वो पटेल भी नहीं रहे और जो हैं उनमें से अधिकतर रिश्वत खोर हैं तो निर्णय की क्या आशा।
संपत्तिकेबंटवारे: परिवार के सदस्यों के बीच संपत्ति का उचित बंटवारा न होना अक्सर रिश्तों में दरार डाल देता है।
यानी #परिवारोंकाविभाजन: अब संयुक्त परिवारों की जगह एकल परिवारों ने ले ली है। लोग अपने निजी हितों पर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं, जिससे आपसी सहयोग में कमी आई है।
परिवारमेंजमीनी_विवाद: गांवों में अक्सर जमीन से जुड़े विवाद होते हैं, जिनके कारण परिवारों और पड़ोसियों के बीच मनमुटाव पैदा हो जाता है।
राजनीतिक_मतभेदों ने तो गांव की परम्परा को ही बदल डाला है। सरपंचों और एमएलए स्तर के चुनावों ने गांव के लोगों को दलों में बांट दिया है, जिससे उनके बीच वैचारिक मतभेद और तनाव उत्पन्न हो सकते हैं।
आजकल गांव के कुछ परिवारों के लड़के शिक्षा प्राप्त अच्छी नौकरियों में हैं तो कुछ के आगे नहीं बढ़ पाई। इस वजह से आर्थिक स्थिति, समाज में प्रतिष्ठा, और अन्य सामाजिक मानदंडों के कारण लोग एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं, जो रिश्तों में खटास का कारण है। यह है #सामाजिक_प्रतिद्वंद्विता का नतीजा जो पॉजिटिव की जगह नेगेटिविटी ने ले ली है।
इसे #आर्थिक_असमानता भी कह सकते हैं क्योंकि अभी के समय में लोगों की आर्थिक स्थिति में अंतर बढ़ गया है। कुछ लोग अधिक संपन्न हो गए हैं, जबकि कुछ अभी भी गरीबी में जी रहे हैं। यह असमानता आपसी ईर्ष्या और अलगाव को जन्म देती है।
व्यक्तिगत_ईर्ष्या भी एक भाईचारे को कम करने में सहायक है। गांव में किसी की सफलता से जलन, अरे वाह उसके क्या कहने यानी व्यक्तिगत ईर्ष्या और रिश्तों में मनमुटाव हो रहा है।
स्वार्थीपन, लोगों में स्वार्थीपन चरम पर है। अपनी व्यक्तिगत उन्नति और निजी जीवन पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, जिसके कारण सामूहिक भावना और सहयोग की भावना कमजोर हो गई है।
सामाजिक_बदलाव: आधुनिकता जैसे किसी एक का घर संपन्न और दूसरा गरीब, तो पारंपरिक मूल्यों के बीच का टकराव भी रिश्तों में दूरियां ला रहा है।
अंत में कह सजाते हैं #शहरीकरण_और बाजारीकरण: गांवों से लोग #शिक्षा और #रोजगार के लिए शहरों में जा रहे हैं। इससे गांवों की पारंपरिक जीवनशैली में बदलाव आया है, और आपसी सहयोग और संबंधों में कमी आई है।
कोई लौटा दे मुझे मेरे बचपन के दिन!