“एक राजा और फकीर बहुत सँकरी पगडंडी पर आमने-सामने टकरा गए। अब दोनों रास्ते को कैसे पार करें? जब एक झुककर रास्ते से हटता तो दूसरे को रास्ता मिलता। राजा अपने अहं में था- उसने फकीर से कहा- ऐ फकीर चल हट मुझे रास्ता दे, क्योंकि मैं राजा हूँ।
फकीर ने कहा- आप भूमि के राजा हैं, मैं तो मन का राजा हूँ- पहले आप मुझे रास्ते दें। इस पर राजा ने कहा कि यदि तुम राजा हो तो हथियार कहाँ है? फकीर ने कहा कि मेरे विचार मेरे हथियार हैं।
राजा ने पूछा तुम्हारी सेना कहाँ है? फकीर ने कहा मेरी किसी से दुश्मनी नहीं है, जो सेना रखूँ। फकीर के उत्तर से राजा हैरान हो गया। राजा ने फिर कहा कि यदि तुम राजा हो तो तुम्हारे पास धन कहाँ है। फकीर ने कहा कि मेरा ज्ञान ही मेरा धन है।
राजा ने कहा कि तुम्हारे नौकर-चाकर कहाँ हैं- फकीर ने कहा कि मेरी इंद्रियाँ ही मेरी नौकर-चाकर हैं। यह सब सुनकर राजा समझ गया कि यह कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं। राजा फकीर के उत्तर सुनकर विचारवान हो गया और फकीर को रास्ता दे दिया। लौकिक सुख-सुविधाएँ क्षणिक हैं। पल भर में व्यक्ति राजा से रंक हो जाता है। रंक से राजा हो जाता है। संत फकीर अपनी मस्ती में शाश्वत मन के राजा होते हैं।