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उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले का विरोध किया,

जिसमें मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2004 को असंवैधानिक करार दिया गया था। राज्य सरकार का कहना है कि यह अधिनियम मदरसों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।

इस पर सीजेआई ने कहा, “आप इस देश के कई सौ वर्षों के इतिहास को इस तरह खत्म नहीं कर सकते।” उन्होंने सवाल किया कि क्या यह राष्ट्रीय हित में नहीं है कि मदरसों को विनियमित किया जाए।

पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 28(3) का हवाला देते हुए कहा कि कोई भी छात्र स्वेच्छा से धार्मिक निर्देश प्राप्त कर सकता है, लेकिन इसे अनिवार्य नहीं बनाया जाना चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने यह भी पूछा कि धार्मिक निर्देश देने वाले संस्थानों को कुछ बुनियादी मानकों का पालन करने के लिए बाध्य करना अनुचित कैसे हो सकता है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत के सभी धर्मों के संदर्भ में समान नियम लागू होते हैं, चाहे वह इस्लाम हो या हिंदू वेद पाठशालाएं, बौद्ध भिक्षु प्रशिक्षण संस्थान हों या जैन मुनि शिक्षण संस्थान।

मुकुल रोहतगी और अन्य वरिष्ठ वकीलों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि न्यायालय का उद्देश्य यह है कि मदरसों के छात्रों को भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले और उन्हें मुख्यधारा में शामिल किया जाए। अदालत ने मामले की सुनवाई पूरी करते हुए फैसला सुरक्षित रख लिया है।

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