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परमात्मा का नाम ही हमारा कवच है, जो निरंतर हमारी रक्षा करता है​

जब तक हमारे अन्तःकरण (मन बुद्धि चित्त अहंकार) से परमात्मा प्रवाहित है, तब तक कोई भी हमारा कुछ भी अहित नहीं कर सकता। जिस क्षण हम परमात्मा को भूलकर वासनात्मक विचारों में डूब जाते हैं, उसी क्षण हम आसुरी शक्तियों के शिकार हो कर गलत काम करने लगते हैं। भौतिक जगत पूर्ण रूप से सूक्ष्म जगत के अंतर्गत है।
अगर हम संसार में कोई अच्छा कार्य करना चाहते हैं तो उसका एक ही उपाय है कि हम परमात्मा को निरंतर स्वयं के भीतर प्रवाहित होने दें, उसके उपकरण बन जाएँ। अन्य कोई उपाय नहीं है।
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अपनी युवावस्था में मैंने अनेक साम्यवादी देशों (रूस, लातविया, यूक्रेन, रोमानिया, चीन और उत्तरी-कोरिया) का भ्रमण किया है, जहाँ किसी भी प्रकार से भगवान की भक्ति की सजा गिरफ्तारी और मृत्युदंड थी। वहाँ के लोगों की पीड़ा देखी है। अब तो समय बदल गया है। उत्तरी कोरिया में तो अभी भी भगवान की भक्ति की सजा मृत्युदंड है। सऊदी अरब जैसे देशों में तो इस्लाम के अतिरिक्त अन्य किसी भी आस्था पर प्रतिबंध है।
ऐसे देश साक्षात नर्ककुंड हैं। पूर्वजन्मों में हमने कोई अच्छे कर्म किए थे, इसलिए भारतवर्ष में हमारा जन्म हुआ है। अतः भारत की अस्मिता की रक्षा, और भारत का हित हमारे लिए सर्वोपरी हो।
ॐ तत्सत् !!
कृपा शंकर

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