सत्य मे तो परमार्थ जिसमे दरिद्र व भूखे मनुष्य के लिए अन्न दान वस्त्र दान व दरिद्र रोगी मनुष्य के लिए उपचार चिकित्सा व्यवस्था व पक्षीयो तथा गाय व अन्य पशुओ के लिए दाना चारा पानी की सेवा बली वैशवदैव यज्ञ करना यह सभी परमार्थ पुण्य कर्म ही यथार्थ सत्य
निष्काम कर्मयोग योग है यदि यह परब्रह्म परमेश्वर की प्राप्ति के उद्धेश्य से किया जाता है। मनुष्य जीवन मे सत्य को समाहित करके जो भी सांसारिक कर्म किया जाता है वह सबकुछ भगवत गीता व वेद शास्त्र अनुसार परब्रह्म की प्राप्ति करा देता है मनुष्य को वह सब कर्म भगवत गीता का कर्म योग है
जो"पॉजिटिव"सोचता है उसे कोई "जहर"नहीं मार सकता और जो "नेगेटिव"सोचता है उसे कोई दवाई नहीं बचा सकती
एक खूबसूरत सोच ही एक खूबसूरत जिंदगी को जन्म देती है सब को इकट्ठा रखने की ताकत "प्रेम" में है और सबको अलग करने की ताकत "भ्रम" में है जीवन में अगर 'खुश' रहना है तो स्वयं को एक 'शांत सरोवर' की तरह बनाए.जिसमें कोई 'अंगारा' भी फेंके तो.खुद बख़ुद ठंडा हो जाए सुख और दुख अपने नसीब से मिलता है अमीरी गरीबी से इसका कोई लेना देना नहीं है रोने वाले"महलों"में भी रोते हैं और अगर किस्मत में खुशियां हों तो झोपड़ी में भी हंसी गूँजती है।