चार वेद चार धाम, चार ही स्वीकार्य हैं।
चार मठ हैं राष्ट्र में, चार शंकराचार्य हैं ।।
उत्तर दिशा में बद्रिकाश्रम, ज्योंतिर्मठ की ज्योंति जलती।
अथर्ववेद को समर्पित ज्ञान की रसधार बहती।।
ज्योंतिर्मठ का माहावाक्य, अयमात्माब्रह्म है।
धरती का बैकुंठ धाम, बद्रीनाथ सुरम्य है।।
मठ के जो दर्शन करे, उसे मिलता परमानंद है।
पूर्णाम्बा आराध्य देवी, आचार्य अविमुक्तेश्वरानंद हैं।।
दूसरा श्रंगेरी मठ है, कर्नाटक चिकमंगलूर में।
यजुर्वेद को समर्पित, दक्षिण दिशा सुदूर में।।
इसका माहावाक्य , अहंब्रहमास्मि है।
जिसका सरल रुप , अहंब्रह्म अस्मि है।।
मां कामाख्या कामाक्षी, आराध्या की उतारें आरती।
छत्तीसवें आचार्य हैं, स्वामी तीर्थ भारती ।।
गोवर्धन मठ विराजे, पूर्व पुरी जगन्नाथ मे।
वेदों में ऋगवेद है, इसी मठ के साथ में।।
गोवर्द्धन मठ माहावाक्य, मात्र प्रज्ञानं ब्रम्ह है।
पुरी की शोभा बढ़ाता, समुद्र तट सुरम्य है।।
विमला देवी विमलाम्बा, आराध्य देवी मानते।
निश्चलानंद सरस्वती, आचार्य पद शोभा बढ़ाते।।
पश्चिम में शारदा मठ, द्वारिकाधीश धाम है।
विष्णु का रुप हैं कृष्ण जिनका नाम है।।
तत्वमसि माहावाक्य है, सामवेद को समर्पित।
श्री कृष्ण के इस रुप को,नमन करते सभी अर्पित ।।
भद्रकाली कपाली, मां ही परमानंद हैं।
आचार्य श्री गुरूदेव, सरस्वती सदानंद हैं ।।
और सब हैं स्वयं भू, सर्व अस्वीकार्य हैं।
चार वेद चार धाम , मठ चार शंकराचार्य हैं ।।