अपने स्वभाव के अनुकूल उपासना करें — (संशोधित )
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एक बात तो यह न भूलें कि इस पृथ्वी पर हम एक अदृश्य आसुरी और दैवीय जगत से घिरे हुये हैं। सूक्ष्म जगत में अनेक महा असुर हैं जो हमारे चारों ओर हैं। वे हमारे पर अपना अधिकार करना चाहते हैं। सूक्ष्म जगत में अनेक देवता भी हैं और अनेक असुर भी हैं, जो किसी किसी को तो दिखाई देते हैं, लेकिन अधिकांश को नहीं। उनकी अनुभूतियाँ तो सभी को होती हैं।
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भगवान का नाम ही हमारा रक्षा-कवच है जो हमारी रक्षा कर सकता है। लेकिन यह विडम्बना है कि हम में से अधिकांश लोग तो उन असुरों का शिकार बनने के लिए ही भगवान से प्रार्थना करते हैं।
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हमारा तमोगुण ही असुरों को निमंत्रित करता है —
जब भी पराये स्त्री/पुरुष की, या पराये धन की, या अपने दो पैसों के लाभ के लिए दूसरों का लाखों रुपयों का नुकसान करने की, या चोरी रिश्वत आदि की भावना/कामना हमारे मन में आती है, उसी क्षण हम आसुरी जगत के शिकार हो जाते हैं।
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कर्मफल किसी को छोड़ता नहीं है —
स्वर्ग-नर्क आदि भी सत्य हैं। भगवान के चरणों में आश्रय मिले, इससे कम कुछ भी हमें नहीं चाहिये। हमारे मन में इंद्रियों की वासना के विचार आते हैं, वे ही नर्क के द्वार हैं। वासना ही हो तो भगवान के चरण-कमलों में आश्रय पाने की हो या वेदान्त-वासना हो।
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भगवान का जो भी रूप प्रिय लगता है उसी की उपासना करें। आप भगवान श्रीराम की, भगवान श्रीकृष्ण की, श्रीहनुमान जी की, शिव की, या भगवती की, या उनके किसी भी रूप की उपासना करें। सब कुछ अपना सर्वस्व उन्हें समर्पित कर दें। आप भी उनके साथ एक हो जाओगे। साधना का उद्देश्य भगवान को समर्पण है, न कि कुछ प्राप्ति की।
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रात्रि को सोने से पूर्व कुछ देर तक भगवान का कीर्तन और ध्यान करें। फिर ऐसे सो जाएँ जैसे एक शिशु अपनी माँ की गोद में सोता है। दूसरे दिन प्रातःकाल भगवान ही आपके माध्यम से उठेंगे। उठते ही कुछ देर कीर्तन और ध्यान करो।
फिर पूरे दिन उन्हें अपनी स्मृति में रखो। किसी से छल-कपट मत करो।
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यदि आप में सत्यनिष्ठा और भक्ति (परमप्रेम) है तो भगवान की कृपा निश्चित रूप से होगी। भगवान की कृपा भी सत्यनिष्ठ भक्तों पर ही होती है। अंत में यही कहूँगा — ‘देवो भूत्वा देवं यजेत्’ — (‘शिवो भूत्वा शिवं यजेत्’)॥
ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर