आज की कहानी।
एक पेंसिल जिसने ज़िंदगी बदल दी।
भीड़भाड़ वाले रेलवे स्टेशन के एक कोने में एक भिखारी पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर बैठा करता था। रोज़ की तरह वह खुद से ज्यादा किस्मत पर भरोसा लगाए बैठा था। तभी एक युवा व्यवसायी वहाँ से गुज़रा। उसने बिना कुछ कहे कटोरे में 50 रुपये डाल दिए और आगे बढ़ गया, लेकिन अचानक ट्रेन में चढ़ते समय उसके कदम रुक गए।
वह वापस भिखारी के पास आया और बोला—“मैं कुछ पेंसिल लेना चाहता हूँ। आखिर तुम व्यापारी हो और मैं भी।” यह वाक्य सुनकर भिखारी की आँखों में पहली बार किसी ने भीख नहीं, सम्मान देखा। वर्षों बीत गए।
एक दिन वही व्यवसायी एक बड़े व्यापारिक आयोजन में शामिल हुआ। भीड़ में एक शख्स टाई-सूट में उसके पास आया और बोला—“आप शायद मुझे नहीं पहचानते, लेकिन मैं आपको पहचानता हूँ।” व्यवसायी चौंक गया।
वह वही भिखारी था। उसने मुस्कुराकर कहा—“उस दिन जब आपने मेरी दया नहीं बल्कि कीमत समझी, तब पहली बार मुझे एहसास हुआ कि मैं भी कुछ कर सकता हूँ। आपने सिर्फ पेंसिल नहीं ली थी, मेरे भीतर छुपा हुआ आत्मविश्वास उठा लिया था।
उसी दिन मैंने ठान लिया कि अब भीख नहीं माँगूंगा, मेहनत करूँगा। मैं घूम-घूमकर पेंसिल बेचने लगा, फिर कॉपी-किताबें और आज पूरे शहर का सबसे बड़ा स्टेशनरी थोक-विक्रेता हूँ। आपने सम्मान देकर मेरी ज़िंदगी बदल दी।” व्यवसायी भावुक होकर मुस्कुरा दिया, क्योंकि उसे पहली बार पता चला कि किसी को सम्मान देना भी किसी की किस्मत बदल सकता है।
शिक्षा
इस कहानी से सीख मिलती है कि आत्मसम्मान इंसान की सबसे बड़ी पूँजी है। दुनिया हमें क्या समझती है, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं, जितना यह कि हम खुद को क्या समझते हैं। जब हम खुद को कमजोर मानते हैं, दुनिया भी वैसा ही व्यवहार करती है; और जब हम खुद को काबिल मानते हैं, दुनिया भी हमें उसी नज़र से देखने लगती है। हौसला, मेहनत और आत्मविश्वास इंसान को भिखारी से व्यापारी तक बना सकता है। इसलिए खुद पर विश्वास रखें, अपनी कीमत समझें और सम्मान के साथ जीवन जिएँ—क्योंकि बदलाव हमेशा भीतर से शुरू होता है।
















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