राजस्थान हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि कोई भी वयस्क और विवाहित संतान अपने पिता की स्व-अर्जित संपत्ति में उसकी अनुमति के बिना रहने का अधिकार नहीं रखती।
अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि पिता ऐसी अनुमति वापस ले लेता है तो पुत्र या पुत्री को संपत्ति खाली करनी होगी, क्योंकि इस स्थिति में उनका कब्जा केवल प्रेम और स्नेहवश दिया गया, न कि किसी कानूनी अधिकार के तहत।
जस्टिस सुदेश बंसल की एकलपीठ ने यह टिप्पणी करते हुए पिता के खिलाफ मुकदमा दायर करने वाले पुत्र पर एक लाख रुपये का दंड लगाया।”
ट्रायल कोर्ट ने पिता के पक्ष में निर्णय दिया, जिसके बाद पुत्र ने द्वितीय अपील दायर की और यह दावा किया कि मकान संयुक्त परिवार की संपत्ति है तथा वह उसमें सह-अधिकार रखता है।
अदालत ने ट्रायल कोर्ट के आदेशों और अभिलेखों का अवलोकन करने के बाद पाया कि मकान पिता ने अपने निजी धन से खरीदा था और वह किसी संयुक्त परिवार का हिस्सा नहीं था।
इस आधार पर अदालत ने माना कि पुत्र का कब्जा केवल पिता की अनुमति पर आधारित था और इसे कोई कानूनी मान्यता प्राप्त अधिकार नहीं कहा जा सकता।source :@ LIVE LAW












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