हम अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ कार्य परमात्मा की चेतना में, स्वयं निमित्त मात्र होकर ही कर सकते हैं। राष्ट्र, देश, समाज और स्वयं की भी सर्वश्रेष्ठ सेवा — परमात्मा की चेतना में रहते हुये ही कर सकते हैं। अतः जीवन में भगवत्-प्राप्ति (Self-Realization) हमारा उच्चतम कर्तव्य है।

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हम अपने जीवन का सर्वश्रेष्ठ कार्य परमात्मा की चेतना में, स्वयं निमित्त मात्र होकर ही कर सकते हैं। राष्ट्र, देश, समाज और स्वयं की भी सर्वश्रेष्ठ सेवा — परमात्मा की चेतना में रहते हुये ही कर सकते हैं। अतः जीवन में भगवत्-प्राप्ति (Self-Realization) हमारा उच्चतम कर्तव्य है।
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इसी जीवन में परमात्मा को उपलब्ध होना (Self-Realization) है तो नित्य नियमपूर्वक कम से कम तीन घंटे आध्यात्मिक साधना (जप/ध्यान आदि) को समर्पित करना ही होगा। इससे कम में काम नहीं चलेगा।
यदि आप सेवानिवृत हैं तो प्रयास कीजिये कि नित्य कम से कम ६ घंटे भगवान का ध्यान/जपयोग आदि करें।
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जल की एक बूंद को महासागर में समर्पित करने की तरह स्वयं को भी परमात्मा की अनंतता में समर्पित कर दीजिये। यही परमात्मा का ध्यान है।
आप सभी को मेरा नमन और मंगलमय शुभ कामनाएँ। ॐ तत्सत् !! ॐ स्वस्ति !!
कृपा शंकर
१५ जून २०२५

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