हनुमान//जन्मस्थान- सुमेरु पर्वतवर्ग- किंपुरुषगण – वानरमाता- अंजना (शापित पुंजिक्स्थला)पिता- केसरीमानस पिता- महारुद्र शिव(ग्यारहवें रुद्र)संरक्षक पिता- मरुद्गण(पवनदेव)कार्यस्थान- किष्किंधा व अयोध्या

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।। हनुमान ।।
जन्मस्थान- सुमेरु पर्वत
वर्ग- किंपुरुष
गण – वानर
माता- अंजना (शापित पुंजिक्स्थला)
पिता- केसरी
मानस पिता- महारुद्र शिव(ग्यारहवें रुद्र)
संरक्षक पिता- मरुद्गण(पवनदेव)
कार्यस्थान- किष्किंधा व अयोध्या
लंबाई- सामान्य पुरुष की तुलना में लंबे
शरीर सौष्ठव– सुगठित, वज्रसमान कठोर
पहचान चिन्ह– वज्र प्रहार से टेढी ठोड़ी।
अतिरिक्त विशेषता– सक्रिय पूंछ।
शिक्षा– सम्पूर्ण वेदवेदांग, शस्त्र व शास्त्र।
गुरु — विवस्वान (सूर्य), शिव, मरुद्गण
प्रमुख शस्त्र– गदा

प्रमुख युद्ध–

1– देवलोक का युद्ध– विरुद्ध विवस्वान, राहु, इंद्र।
2– गुरुदक्षिणा का युद्ध — विरुद्ध शनि
3– अशोकवाटिका का युद्ध– विरुद्ध अक्षकुमार, इंद्रजीत
4– लंका का युद्ध– विरुद्ध रावण, कुंभकर्ण
5– वीरपुर का युद्ध-विरुद्ध महारुद्र शिव
6–सरयू तट का युद्ध- विरुद्ध श्रीराम
7– वाल्मीकि आश्रम का युद्ध– विरुद्ध लव-कुश

हिंदू देवमंडल में समस्त देवी देवताओं में हनुमान ही इतने लोकप्रिय क्यों हैं ? जरा याद कीजिये अपने बचपन को ।
रामलीला और फिर टीवी सीरियल रामायण में हनुमानजी की एंट्री….किस कदर हम पुलकित हो उठते थे।

भारत ही नहीं दक्षिण पूर्व एशिया से लेकर सुदूर अतीत में पश्चिम एशिया में हित्तियों की मुद्राओं, मूर्तियों व लोकनाट्यों में उनका अंकन मंचन होता रहा है।

हनुमान जो एक छोटे बच्चे से लेकर गोस्वामी तुलसीदास जैसे गंभीर वेदज्ञ विद्वान के मन में बसे हुये।

हनुमान जो दुर्बलों के भी हैं और मल्लों व योद्धाओं के आराध्य भी।

क्यों?

जवाब प्रश्न में ही छिपा हुआ है।

हनुमान एक ओर बच्चे की तरह अबोध, निश्छल और सरल हैं तो दूसरी ओर वे ज्ञानियों में भी अग्रगण्य हैं।

हनुमान एक ओर वज्रांग शरीर तो दूसरी ओर उनका शक्तिसंयम व ब्रह्मचर्य का आदर्श ।

हनुमान के व्यक्तित्व में सरलता और गंभीरता के दो विपरीत ध्रुवीय गुणों का यह अद्भुत समावेश ही उन्हें दैवीय बनाता है।

कुछ ऐसे ही गुण महाभारत में भीम में भी हैं और इसीलिये लोकप्रिय भी परंतु वे कभी भी ईश्वरत्व की श्रेणी में नहीं आ सके क्योंकि भीम में प्रतिशोध था जबकि हनुमान ने सदैव निष्काम कर्म किया,

भीम में नीरक्षीर विवेक का अभाव था जबकि हनुमान का विवेक उन्हें स्पष्ट राह दिखता था।

यही कारण है कि श्रीराम के प्रति अविचल भक्ति के बावजूद वे अपने उन्हीं आराध्य के विरुद्ध कर्तव्य की पुकार पर युद्ध में उतर गये।

त्याग ऐसा कि अपनी लिखी रामायाण को पानी में इसलिये डुबो दिया कि वाल्मीकि उनकी कथा सुनकर दुःखी हो गये कि उनकी लिखी रामायण को अब कोई नहीं पढ़ेगा।

संगीतज्ञ और गायक ऐसे कि उनके गायन को सुनकर संगीतशास्त्र के प्रणेता साक्षात शिव और नारद सहित समस्त देवता द्रवीभूत हो गए।

ऐसे हैं हमारे आराध्य हनुमान जो एक ओर चंदेल और जेठवा जैसे राजकुलों के प्रेरणापुरुष बने तो वहीं ओर उत्तर में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा और दक्षिण में समर्थगुरु रामदास की प्रेरणा से स्थापित अखाड़ों में उन हिंदू युवकों के लिये प्रेरणास्रोत बने जिन्होंने आतताई विदेशी मुस्लिम शासकों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया।

ब्रिटिश गुलामी के काल में भी ये अखाड़े और वहाँ स्थापित बजरंगबली हिंदू युवकों में निरंतर शक्तिशाली शरीर और शक्तिशाली मन की प्रेरणा देते रहे।

आज अखाड़ों का स्थान जिमों ने और अखाड़े के कोने पर स्थापित बजरंगबली की प्रतिमा का स्थान बॉडीबिल्डर्स के पोस्टरों ने ले लिया है जिसका नतीजा है चरित्र से रहित लड़कियों को प्रभावित करने वाले दिखावटी सौष्ठव वाले आदर्शरहित खोखले युवा।

आज जिमों में बजरंगबली के चित्रों को स्थापित करने की आवश्यकता है।
आज हुड़दंगी बजरंगियों की नहीं बजरंगबली के आदर्शों वाले दृढ़ शरीर और दृढ मनोमस्तिष्क वाले हिंदू युवकों की आवश्यकता है

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