श्री राधा के माता पिता की कथा// पुराणों के अनुसार राधा रानी श्री वृषभान जी और कीर्ति देवी की पुत्री थी। श्री राधा जी के माता पिता पूर्वजन्म में कौन थे? उनके कौनसे पुण्य कर्मों के फलस्वरूप उन्हें ये सौभाग्य प्राप्त हुआ जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है।

Spread the love

(((( श्री राधा के माता पिता की कथा ))))
.
पुराणों के अनुसार राधा रानी श्री वृषभान जी और कीर्ति देवी की पुत्री थी। श्री राधा जी के माता पिता पूर्वजन्म में कौन थे? उनके कौनसे पुण्य कर्मों के फलस्वरूप उन्हें ये सौभाग्य प्राप्त हुआ जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है।
.
वृषभानुजी का सौभाग्य अद्भुत है, अवर्णनीय है; क्योंकि उनके यहाँ श्रीराधिका जी स्वयं पुत्री रूप से अवतीर्ण हुई। कलावती और सुचन्द्र ने पूर्वजन्म में कौन-सा पुण्यकर्म किया था, जिसके फलस्वरूप इन्हें यह सौभाग्य प्राप्त हुआ ?
.
एक बार श्रीनारद जी राजा बाहुबल को स्वयं श्री वृषभानु और कीर्ति जी के पूर्वजन्म की कथा सुनाई थी।
.
श्री वृषभानु जी का नाम सुचन्द्र और माता कीर्ति जी का नाम कलावती था। राजराजेश्वर महाभाग सुचन्द्र राजा नृग के पुत्र थे।
.
परम सुन्दर सुचन्द्र चक्रवर्ती नरेश थे। उन्हें साक्षात् भगवान का अंश माना जाता है। पूर्वकाल में (अर्यमा-प्रभृति) पितरों के यहाँ तीन मानसी कन्याएँ उत्पन्न हुई थीं। वे सभी परम सुन्दरी थीं। उनके नाम थे-कलावती, रत्नमाला और मेनका।
.
पितरों ने स्वेच्छा से ही कलावती का हाथ श्रीहरि के अंशभूत बुद्धिमान् सुचन्द्र के हाथ में दे दिया। रत्नमाला को विदेहराज के हाथ में और मेनका को हिमालय के हाथ में अर्पित कर दिया। साथ ही विधि-पूर्वक दहेज की वस्तुएँ भी दीं।
.
महामते! रत्नमाला से सीता जी और मेनका के गर्भ से पार्वती जी प्रकट हुई। इन दोनों देवियों की कथाएँ पुराणों में प्रसिद्ध हैं।
.
तदनन्तर कलावती को साथ लेकर महाभाग सुचन्द्र गोमती के तट पर ‘नैमिष’ नामक वन में गये। उन्होंने ब्रह्माजी की प्रसन्नता के लिये तपस्या आरम्भ की। वह तप देवताओं के कालमान से बारह वर्षों तक चलता रहा।
.
तदनन्तर ब्रह्माजी वहाँ पधारे और बोले-‘वर माँगो।’ राजा के शरीर पर दीमकें चढ़ गयी थीं। ब्रह्मवाणी सुनकर वे दिव्य रूप धारण करके बाँबी से बाहर निकले।
.
उन्होंने सर्वप्रथम ब्रह्माजी को प्रणाम किया और कहा- ‘मुझे दिव्य परात्पर मोक्ष प्राप्त हो।’ राजा की बात सुनकर साध्वी रानी कलावती का मन दुःखी हो गया। अतः उन्होंने ब्रह्माजी से कहा..
.
‘पितामह ! पति ही नारियों के लिये सर्वोत्कृष्ट देवता माना गया है। यदि ये मेरे पतिदेवता मुक्ति प्राप्त कर रहे हैं तो मेरी क्या गति होगी ?
.
इनके बिना मैं जीवित नहीं रहूँगी। यदि आप इन्हें मोक्ष देंगे तो मैं पतिसाहचर्य में विक्षेप पड़ने के कारण विह्वल हो आपको शाप दे दूँगी|
.
ब्रह्माजी ने कहा-देवि ! मैं तुम्हारे शाप के भय से अवश्य डरता हूँ; किंतु मेरा दिया हुआ वर कभी विफल नहीं हो सकता। इसलिये तुम अपने प्राणपति के साथ स्वर्ग में जाओ। वहाँ स्वर्गसुख भोगकर कालान्तर में फिर पृथ्वी पर जन्म लोगी।
.
द्वापर के अन्त में भारतवर्ष में, गङ्गा और यमुना के बीच, तुम्हारा जन्म होगा। तुम दोनों से जब परिपूर्णतम भगवान् की प्रिया साक्षात् श्रीराधिका जी पुत्री-रूप में प्रकट होंगी, तब तुम दोनों साथ ही मुक्त हो जाओगे।
.
श्री नारदजी बताते हैं कि ब्रह्माजी के दिव्य और अचूक आशीर्वाद से कलावती और सुचंद्र दोनों ने पृथ्वी पर पुनर्जन्म लिया। वे ‘कीर्ति’ और ‘श्री वृषभानु’ के नाम से जाने जाते हैं।
.
कलावती का जन्म कन्याकुब्ज (कन्नौज) के राजा भलंदन की यज्ञ अग्नि से हुआ था। इस दिव्य युवती को अपने पिछले जन्म की स्मृतियाँ बनी रहीं।
.
सुचंद्र ने सुरभानु के घर जन्म लिया और ‘श्री वृषभानु’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्हें भी अपना पिछला जन्म याद था।
.
गोपों में सबसे श्रेष्ठ होने के कारण, वे दूसरे कामदेव के समान असाधारण सुंदरता रखते थे। परम बुद्धिमान् नन्दराजजी ने इन दोनों का विवाह-सम्बन्ध जोड़ा था।
.
उन दोनों को पूर्वजन्मकी स्मृति थी ही, अतः वह एक-दूसरे को चाहते भी थे और दोनों की इच्छा से ही यह सम्बन्ध हुआ।
.
जो मनुष्य वृषभानु और कलावती के इस उपाख्यान को श्रवण करता है, वह सम्पूर्ण पापों से छूट जाता है और अन्त में भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र के सायुज्य को प्राप्त कर लेता है॥
डॉ अखिलेश मिश्र लखनऊ
(( जय जय श्री राधे ))

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *