06 अक्तूबर 2025
शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएँ!
🚩🕉️शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है, वर्ष की सबसे ज्योतिर्मय रात्रि होती है। इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं के साथ पूर्ण रूप से प्रकाशित होता है और यह रात समृद्धि, स्वास्थ्य और सौभाग्य की कामना से जुड़ी होती है। परंपरा है कि इस रात्रि में चाँदनी में रखी हुई खीर का सेवन आरोग्य और शक्ति प्रदान करता है।
यह चांदनी रात आपके जीवन में शीतलता, समृद्धि और मधुरता भर दे।
यही शुभ रात्रि भगवान श्री कृष्ण की दिव्य महारास लीला की भी स्मृति दिलाती है — जब वृन्दावन की रसमयी भूमि पर श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ प्रेम, भक्ति और आनन्द से भरपूर रास रचाया था।
यह लीला संपूर्ण भक्ति, निस्वार्थ प्रेम और आत्मा की परम आनंद अवस्था का प्रतीक है।
यह दिवस माँ लक्ष्मी की आराधना का भी विशेष अवसर है — माना जाता है कि जो रात्रि जागरण कर ईश्वर भक्ति में लीन रहता है, उस पर माँ लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है।
इस शुभ दिन पर आपके जीवन में भी चाँदनी जैसी शीतलता, श्री कृष्ण के प्रेम जैसा माधुर्य और सुख-समृद्धि की उजास सदा बनी रहे।
भाग – 02
शरद पूर्णिमा से जुड़े प्रमुख पौराणिक कथानक और श्लोक
शरद पूर्णिमा से जुड़े कई पौराणिक कथानक और श्लोक हैं, जो इस पर्व की गहन धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाते हैं। यहाँ प्रमुख कथाएं और प्रचलित श्लोक प्रस्तुत हैं।
प्रमुख पुराणिक कथानक
1. भगवान श्रीकृष्ण की महारास लीला (ब्रज कथा)
ब्रज क्षेत्र की आस्था के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में रास लीला रचाई थी। श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी की मधुर धुन से गोपियों को आकर्षित किया और उस पूर्णिमा की रात को वे स्वयं हर गोपी के साथ नृत्य करते रहे। यह अलौकिक प्रेम-लीला आत्मा और परमात्मा के मिलन की प्रतीक मानी जाती है तथा भक्ति और समर्पण का अनुपम आदर्श प्रस्तुत करती है।
2. कोजागरी व्रत कथा
एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार, एक साहूकार की दो बेटियाँ थीं। बड़ी बेटी पूर्ण श्रद्धा और नियम से शरद पूर्णिमा का व्रत करती थी, जबकि छोटी केवल दिखावे के लिए व्रत रखती। बड़ी बहन के सभी बच्चे स्वस्थ रहते थे, जबकि छोटी के शिशु जन्म के तुरंत बाद मर जाते थे। एक संत ने छोटी बहन को सच बताया कि व्रत के नियमों के उल्लंघन के कारण यह हो रहा है। फिर, छोटी बहन ने पूरी श्रद्धा, नियम और भक्ति के साथ शरद पूर्णिमा व्रत किया, तो माता लक्ष्मी और चंद्रदेव की कृपा से उसका पुत्र जीवित हो गया। तब से इस व्रत को संपूर्ण भक्ति और जागरण के साथ रखने की परंपरा है।
3. लक्ष्मीजी का पृथ्वी पर आगमन
कई पुराणों के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण कर जागरण-उपासना करने वालों को धन-समृद्धि से नवाजती हैं। इसलिए इस रात जागरण और लक्ष्मी पूजन का विशेष विधान है।
शरद पूर्णिमा से जुड़े प्रमुख श्लोक
शरद पूर्णिमा मां लक्ष्मी, चंद्र देव, भगवान शिव, कुबेर और कृष्ण की आराधना करने का शुभ पर्व है। चंद्र की शुभ्र किरणें जब आंगन में बिखरेंगी तब बरसेगी खुशियां, और मिलेगा दिव्य लक्ष्मी के साथ इन सभी देवताओं का शुभ आशीर्वाद।
1 . शरद पूर्णिमा की रात मां लक्ष्मी को मनाने का मंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः
2 . शरद पूर्णिमा की रात कुबेर को मनाने का मंत्र
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धन धान्याधिपतये
धन धान्य समृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।।
3 . शरद पूर्णिमा पर भगवान शिव की इस मंत्र से पूजा करें
शिवलिंग का जल स्नान कराने के बाद पंचोपचार पूजा यानी सफेद चंदन, अक्षत, बिल्वपत्र, आंकडे के फूल व मिठाई का भोग लगाकर इस आसान शिव मंत्र का ध्यान कर जीवन में शुभ-लाभ की कामना करें – यह शिव मंत्र मृत्युभय, दरिद्रता व हानि से रक्षा करने वाला माना गया है-
पंचवक्त्र: कराग्रै: स्वैर्दशभिश्चैव धारयन्।
अभयं प्रसादं शक्तिं शूलं खट्वाङ्गमीश्वर:।।
दक्षै: करैर्वामकैश्च भुजंग चाक्षसूत्रकम्।
डमरुकं नीलोत्पलं बीजपूरकमुक्तमम्।।
4. यह है रासलीला का खास गोपीकृष्ण मंत्र
कहते हैं शरद पूर्णिमा की रात भगवान कृष्ण ने गोपियों संग रास रचाया था। इसमें हर गोपी के साथ एक कृष्ण नाच रहे थे। गोपियों को लगता रहा कि कान्हा बस उनके साथ ही थिरक रहे हैं। अत: इस रात गोपीकृष्ण मंत्र का पाठ करने का महत्व है।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीकृष्णाय गोविंदाय गोपीजन वल्लभाय श्रीं श्रीं श्री’
5. शरद पूर्णिमा की रात मिलेगी चंद्र देव की कृपा…
ॐ चं चंद्रमस्यै नम:
दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम ।
नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।।
निम्न दिए मंत्र का शरद पूर्णिमा की रात को जप करने से सौभाग्य की प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है-
“पुत्र पौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम् प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे।
शरद पूर्णिमा पौराणिक संदर्भों में केवल चंद्र सौंदर्य या ऋतु परिवर्तन का पर्व नहीं, बल्कि इसमें निहित रास लीला, मातृत्व, श्रद्धा और सदाचरण की कहानियाँ सनातन धर्म के अद्भुत आध्यात्मिक संदेशों का स्रोत हैं।
इन कथाओं एवं श्लोकों के माध्यम से समाज में प्रेम, भक्ति, जागरण और आरोग्यता का संचार
भगवान श्रीकृष्ण का महारास — प्रेम और परमात्मा का अद्वैत मिलन
भगवान श्रीकृष्ण का महारास” केवल एक लीला नहीं, बल्कि अद्वितीय आध्यात्मिक रहस्य है — जिसमें भक्ति, प्रेम, और ब्रह्म का पूर्ण मिलन होता है।
1. महारास का अर्थ और प्रसंग
“रास” शब्द संस्कृत धातु ‘रम्’ से बना है जिसका अर्थ है — आनंद में रमना। महारास का अर्थ हुआ — महान परम आनंद का खेल, जहाँ परमात्मा स्वयं अपनी सृष्टि के साथ नृत्य करते हैं।
यह लीला शरद पूर्णिमा की रात्रि में वृन्दावन के निकट यमुना तट पर घटित हुई। उस रात्रि को चन्द्रमा अपनी सम्पूर्ण शीतलता और माधुर्य में था, और प्रकृति स्वयं दिव्य संगीत में लीन थी।
2. भौतिक नहीं, आध्यात्मिक घटना
बहुत से लोग महारास को केवल नृत्य या लौकिक प्रेमकथा समझ लेते हैं, जबकि यह शुद्ध आध्यात्मिक अनुभूति का चरम है। यहाँ “गोपी” शब्द शरीर नहीं, बल्कि आत्मा की प्रतीक है — जो परमात्मा से मिलन की अभिलाषा रखती है।
श्रीमद्भागवत महापुराण (दशम स्कंध) में कहा गया है — “न तु ग्रीहं गृहमित्याहुर्गृहिणी गृहमेव तु।” अर्थात् — शरीर नहीं, बल्कि हृदय ही वह स्थान है जहाँ भगवान वास करते हैं। इस प्रकार महारास आत्मा और परमात्मा के बीच अद्वैत योग की परम स्थिति है।
3. गोपी प्रेम का स्वरूप
गोपी प्रेम निष्काम और अनन्त है। वे कृष्ण से कुछ पाने के लिए नहीं, बल्कि कृष्ण में खो जाने के लिए प्रेम करती हैं। उनका प्रेम सांसारिक आकर्षण से परे है — “न कामया कृष्ण पदारविन्दं” —अर्थात हम भगवान के चरणों की सेवा चाहती हैं, फल नहीं।
गोपी आत्मा की प्रतीक हैं जो ब्रह्म की ओर आकर्षित होती है, और कृष्ण उस परम ब्रह्म के स्वरूप हैं जो सब आत्माओं को अपनी ओर खींच लेते हैं।
4. कृष्ण की सर्वव्यापकता का रहस्य
महारास में जब प्रत्येक गोपी के साथ श्रीकृष्ण नृत्य करते हैं — तो यह परमात्मा की सर्वव्यापकता का प्रतीक है।एक ही कृष्ण असंख्य रूपों में हर हृदय में विद्यमान हैं। यह सन्देश देता है कि परमात्मा प्रत्येक जीव के भीतर निवास करता है, और प्रत्येक आत्मा उसके साथ नृत्य करने में सक्षम है यदि वह अहंकार त्याग दे।
5. शरद पूर्णिमा का महत्व
शरद पूर्णिमा की रात्रि को चंद्रमा शीतलतम होता है।यह मन की निर्मलता और भक्ति की शुद्धता का प्रतीक है। जब मन (चंद्रमा) पूर्ण और शांत हो, तभी आत्मा (गोपी) परमात्मा (कृष्ण) से मिलन कर सकती है। महारास इसी आन्तरिक मिलन का प्रतीक है।
6. आध्यात्मिक संदेश
महारास हमें सिखाता है कि — भगवान भक्त के हृदय में उपस्थित हैं, बाहर नहीं। सच्चा प्रेम देह का नहीं, आत्मा का बंधन है। जब व्यक्ति स्वार्थ, अहंकार और वासना से मुक्त होता है, तभी वह परमात्मा के साथ नृत्य कर सकता है। यह रास भक्ति की पराकाष्ठा है जहाँ प्रेम, ज्ञान और योग तीनों एक हो जाते हैं।
7. सांस्कृतिक और कलात्मक प्रभाव
महारास भारतीय संगीत, नृत्य, चित्रकला और साहित्य में अनन्त प्रेरणा का स्रोत है। मणिपुर और गुजरात की रासलीला नृत्य परम्पराएँ इसी से उत्पन्न हुईं। जयदेव की गीतगोविंद, सूरदास और मीराबाई की रचनाओं में भी महारास की माधुर्य भावना झलकती है।
8. दार्शनिक दृष्टि से
आदि शंकराचार्य, वल्लभाचार्य, चित्तन्य महाप्रभु और गौड़ीय वैष्णव परम्परा सभी ने महारास को परम प्रेमयोग कहा है —जहाँ ज्ञान (ब्रह्मबोध), भक्ति (प्रेम) और योग (एकत्व) एक साथ पूर्ण होते हैं।
9. महारास का शाश्वत संदेश
महारास हमें बताता है कि — “भगवान का मिलन किसी एक गोपी या व्यक्ति के लिए नहीं, हर आत्मा के लिए संभव है।”
परमात्मा हर हृदय में समान रूप से विद्यमान है। यदि हृदय निर्मल, निष्काम और प्रेममय हो जाए — तो हर मनुष्य का जीवन स्वयं एक महारास बन सकता है।
महारास एक ऐसी घटना है, जो मानव जीवन के भीतर घटने वाली आध्यात्मिक अनुभूति है । जहाँ आत्मा और परमात्मा का मिलन होता है, और समस्त ब्रह्मांड उस दिव्य प्रेम की धुन पर नृत्य करता है।
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