शंका// आत्मा शाश्वत है, उसकी कोई मृत्यु नहीं है। यदि यह शंका या भय है कि यह शरीर छूट जायेगा, तो अभी इसी समय मान लीजिये कि यह तो छूट ही गया है। हम यह शरीर नहीं हैं, इससे पृथक हैं। परमात्मा तो हमें मिले ही हुए हैं। वे हमसे पृथक नहीं, हमारे साथ एक हैं। परमात्मा भी हमारे बिना नहीं रह सकते।

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यदि यह शंका है कि यह शरीर छूट जायेगा, तो अभी इसी समय मान लीजिये कि यह तो छूट ही गया है —
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भगवान हमारे विखंडित विचारों के ध्रुव हों। वे सदा हमारी चेतना के केंद्रबिन्दु हों। आत्मा शाश्वत है, उसकी कोई मृत्यु नहीं है। यदि यह शंका या भय है कि यह शरीर छूट जायेगा, तो अभी इसी समय मान लीजिये कि यह तो छूट ही गया है। हम यह शरीर नहीं हैं, इससे पृथक हैं। परमात्मा तो हमें मिले ही हुए हैं। वे हमसे पृथक नहीं, हमारे साथ एक हैं। परमात्मा भी हमारे बिना नहीं रह सकते।
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अब भगवान और नहीं छिप सकते। अपनी परम कृपा करके उन्होनें अपने रहस्य अनावृत कर दिये हैं। अब कोई रहस्य, रहस्य नहीं रह गया है। इसके लिए उन्हीं को समर्पित होना पड़ेगा। गीता में भगवान कहते हैं —
“नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥२:२३॥”
अर्थात् — इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते और न अग्नि इसे जला सकती है ; जल इसे गीला नहीं कर सकता और वायु इसे सुखा नहीं सकती॥
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“सोइ जानइ जेहि देहु जनाई। जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई॥
तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन। जानहिं भगत भगत उर चंदन॥” (रामचरितमानस)
वही आपको जानता है, जिसे आप जना देते हैं; और जानते ही वह आपका ही स्वरूप बन जाता है। हे रघुनंदन! हे भक्तों के हृदय को शीतल करने वाले चंदन! आपकी ही कृपा से भक्त आपको जान पाते हैं॥
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“तर्कोऽप्रतिष्ठः श्रुतयो विभिन्ना नैको ऋषिर्यस्य मतं प्रमाणम्।
धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायाम् महाजनो येन गतः सः पन्थाः॥”
यह श्लोक महाभारत के वनपर्व में यक्ष-युधिष्ठिर संवाद से लिया गया है। इसका अर्थ है कि तर्क कभी स्थिर नहीं रहता, वेद-शास्त्रों में भी अलग-अलग बातें कहीं गयी हैं, कोई एक ऋषि भी ऐसा नहीं है, जिसके मत को सदा प्रमाण माना जा सके। धर्म का वास्तविक मर्म तो बहुत गहरा है, लेकिन महापुरुष जिस मार्ग पर चले हैं, वही अनुसरण करने योग्य मार्ग है।
महापुरुषों का जीवन और दर्शन ही हमारा सच्चा मार्गदर्शक है।
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अब और कुछ भी लिखा नहीं जा रहा है। परमात्मा की स्मृति आते ही चेतना विस्तृत होकर अनंत से भी परे चली जाती है।
कृपा शंकर
२४ जून २०२५

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