- आज का श्रीमद् भागवत भाव
————————–( 16 – 9 – 25 )
★ भागवत कहती है , कि सारी सृष्टि में सिर्फ आदमी ही रोता हुआ आता है , और सारे जीवन शिकायतें करते हुए जीता है , हर समय ऊपर बाले से नाराज सा रहता है , और अंत में खाली हाथ ऊपर चला जाता है । जबकि केवल उसी के पास विवेक है , और जानता है , कि मैं यहां अपना पूर्व प्रारब्ध भोगने आया हूं । - पहले प्रारब्ध रचा , पीछे रचा शरीर।
तुलसी चिंता क्यों करे , भजता रह रघुवीर।।
यह विवेक अन्य किसी भी प्राणी के पास नहीं है । फिर उससे अच्छे तो पशु हैं , जो बिना किसी शिकायत के अपना प्रारब्ध भोग , भोगकर संसार से विदा हो जाते हैं ।
★ यह कितना बड़ा आश्चर्यजनक है , कि खुद से काफी छोटे – छोटों और अपनी आयु के लोगों को शमशान में फूँक आने के बाद भी जीव यह नहीं सोचता , कि जब ये साथ कुछ नहीं , ले गए , तो फिर मैं जो संग्रह कर रहा हूं , उसे अपने साथ कैसे ले जाऊँगा ? बस लगे हैं जोड़ने में । न तो अधिकतर साधु समझ रहे , न करोड़पति और न कथावाचक ।
★ गीता में भगवान ने कहा है , कि मिश्रित कर्मों का फल यह मानव शरीर है । यानी पूर्वजन्म में उससे कुछ अच्छे और कुछ बुरे कर्म बन जाने के कारण ही यह मनुष्य शरीर मिलता है । अगर उसके सबके सब कर्म , सत्कर्म होते , तो उसकी ऊर्ध्वगति होजाती , और सबके सब बुरे कर्म होते , तो उसे पशुयोनि मिलती । इसका मतलब यह हुआ , कि अगर मानव शरीर मिला है , तो कुछ न कुछ कष्ट तो भोगना ही पडेगा ।
Mail – ramgopalgoyal11@gmail.com
*ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्वस्था मध्ये तिष्ठान्ति राजसाः
जघन्यगुणवृत्तिस्था अधो गच्छन्ति तामसाः ।।
(14/18 ) इसलिए जीवन में प्रारब्धावश सुख – दुख तो आने ही हैं , चाहे वह संत हो , ज्ञानी हो या संसारी ।
( क्रमशः )
( भाई रामगोपालानन्द गोयल ” रोटीराम ” )
ऋषिकेश 9412588877 , 9118321832
Mail – ramgopalgoyal11@gmail.com
Leave a Reply