नमक//एक बार सत्यभामा जी ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, “मैं आप को कैसी लगती हूँ ?”भगवान जी ने कहा, “तुम मुझे नमक जैसी लगती हो।”

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नमक
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एक बार सत्यभामा जी ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, “मैं आप को कैसी लगती हूँ ?”
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भगवान जी ने कहा, “तुम मुझे नमक जैसी लगती हो।”
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सत्यभामा जी इस तुलना को सुनकर प्रसन्न नहीं हुईं, उन्होंने कहा, “तुलना भी की तो किस से। आपको इस संपूर्ण विश्व में मेरी तुलना करने के लिए और कोई पदार्थ नहीं मिला।
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भगवान श्रीकृष्ण ने उस क्षण तो किसी तरह सत्यभामा जी को मना लिया और उनका गुस्सा शाँत कर दिया। कुछ दिनों पश्चात भगवान जी ने अपने महल में एक भोज का आयोजन किया छप्पन भोग की व्यवस्था हुई। भगवान जी ने सर्वप्रथम सत्यभामा जी से भोजन प्रारम्भ करने का आग्रह किया।
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सत्यभामा जी ने पहला कौर मुँह में डाला मगर यह क्या !! सब्जी में नमक ही नहीं था। कौर को मुँह से निकाल दिया। फिर दूसरा कौर मावा-मिश्री का मुँह में डाला और फिर उसे चबाते-चबाते बुरा सा मुँह बनाया और फिर पानी की सहायता से किसी तरह मुँह से उतारा। अब तीसरा कौर फिर कचौरी का मुँह में डाला और तब तक सत्यभामा जी का पारा सातवें आसमान पर पहुँच चुका था। जोर से चीखीं, “किसने बनाई है यह रसोई?”
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सत्यभामा जी की आवाज सुन कर भगवान श्रीकृष्ण दौड़ते हुए सत्यभामा जी के पास आये और पूछा, “क्या हुआ देवी? कुछ गड़बड़ हो गयी क्या? इतनी क्रोधित क्यों हो? तुम्हारा चेहरा इतना तमतमा क्यूँ रहा है? क्या हो गया?”
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सत्यभामा जी ने कहा, “किसने कहा था, आपको भोज का आयोजन करने को? क्या इस तरह बिना नमक की कोई रसोई बनती है? किसी वस्तु में नमक नहीं है। मीठे में शक्कर नहीं है। एक कौर नहीं खाया गया।”
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भगवान श्रीकृष्ण ने बड़े भोलेपन से पूछा, “तो क्या हुआ, बिना नमक के ही खा लेतीं।”
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सत्यभामा जी फिर बोलीं, “लगता है दिमाग फिर गया है आपका? बिना शक्कर के मिठाई तो फिर भी खायी जा सकती है मगर बिना नमक के कोई भी नमकीन वस्तु नहीं खायी जा सकती है।”
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भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, 🌷”तब फिर उस दिन क्यों गुस्सा हो गयी थी? जब मैंने तुम्हे यह कहा कि तुम मुझे नमक पर जितनी प्रिय हो।”🌷
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अब सत्यभामा जी को सारी बात समझ में आ गयी कि यह सारी व्यवस्था उन्हें सबक सिखाने के लिए थी और उन्हें अपनी गलती समझ आ गई।
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🙏🙏 जय श्री राधेश्याम जी 🙏🙏

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