तपस्या का फल//भगवान शंकर जी को पति के रूप में पाने हेतु माता पार्वती जी कठोर तपस्या कर रही थीं। उनकी तपस्या पूर्णता की ओर थी।उसी समय उन्हें एक बालक के डूबने की चीख सुनाई दी। माता तुरंत उठकर वहाँ पहुँची। उन्होंने देखा कि एक मगरमच्छ, एक बालक को पानी के भीतर खींच रहा है।

Spread the love

तपस्या का फल
.
भगवान शंकर जी को पति के रूप में पाने हेतु माता पार्वती जी कठोर तपस्या कर रही थीं। उनकी तपस्या पूर्णता की ओर थी।
.
एक समय वह भगवान के चिंतन में ध्यान मग्न बैठी थी। उसी समय उन्हें एक बालक के डूबने की चीख सुनाई दी। माता तुरंत उठकर वहाँ पहुँची। उन्होंने देखा कि एक मगरमच्छ, एक बालक को पानी के भीतर खींच रहा है।
.
बालक अपनी जान बचाने के लिए प्रयास कर रहा है, तथा मगरमच्छ उसे आहार बनाने का।
.
करुणामयी माँ को बालक पर दया आ गई। उन्होंने मगरमच्छ से निवेदन किया कि बालक को छोड़ दीजिए इसे आहार ना बनाओ।
.
मगरमच्छ बोला, “माता यह मेरा आहार है, मुझे हर छठे दिन उदर पूर्ति हेतु जो पहले मिलता है, उसे मेरा आहार ब्रह्मा ने निश्चित किया है।”
.
माता ने फिर कहा, “आप इसे छोड़ दे इसके बदले मैं अपनी तपस्या का फल दूँगी।”
.
ग्राह ने कहा, “ठीक है।”
.
माता ने उसी समय संकल्प कर अपनी पूरी तपस्या का पुण्य फल उस ग्राह को दे दिया।
.
ग्राह तपस्या के फल को प्राप्त कर सूर्य की भाँति चमक उठा। उसकी बुद्धि भी शुद्ध हो गई। उसने कहा, “माता, आप अपना पुण्य वापस ले लीजिए। मैं इस बालक को यूँ ही छोड़ दूँगा।”
.
ममतामयी माता ने मना कर दिया तथा बालक को गोद में लेकर दुलारने लगीं।
.
बालक को सुरक्षित लौटाकर, माता ने अपने स्थान पर लौटकर पुनः तप प्रारंभ कर दिया।
.
भगवान शिव तुरंत ही वहाँ प्रकट हो गए, और बोले, “पार्वती !! अब तुम्हें तप करने की आवश्यकता नहीं है। हर प्राणी में मेरा ही वास है, तुमने उस ग्राह को तप का फल दिया, वह मुझे ही प्राप्त हुआ। अत: तुम्हारा तप फल अनंत गुना हो गया। तुमने करुणावश द्रवित होकर किसी प्राणी की रक्षा की। अत: मैं तुम पर प्रसन्न हूँ तथा तुम्हें पत्नी रूप में स्वीकार करता हूँ।
.
🌷जो जीव परहित की कामना करता है। उस पर परमात्मा की असीम कृपा होती है। जो व्यक्ति असहायों की सहायता, दयालु प्रेमी करुणाकारी होता है। ईश्वर उसको स्वीकार करते हैं।🌷
.
🙏🙏 ॐ श्री उमामहेश्वराय नमः 🙏🙏

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *