वेदादि सत्य शास्त्रों में बताया है कि 16 संस्कार होते हैं। “व्यक्ति का अंतिम संस्कार शव को जलाना है। उसका नाम ही अंत्येष्टि अर्थात अंतिम संस्कार है। इसके बाद मृतक के लिए कुछ भी नहीं करना होता। उसके कर्म अनुसार ईश्वर उसको अगला जन्म दे देता है।”
बाकी परिवार एवं समाज के लोग उस व्यक्ति के चले जाने पर उसके जीवन से शिक्षा ले सकते हैं, कि “वह व्यक्ति जो जो अच्छे-अच्छे काम करता था, परिवार और समाज के लोग भी उसके अच्छे कामों का अनुकरण करें। और उसमें जो कुछ दोष या बुराइयां थी, उनकी नकल न करें।”
“मृत्यु के बाद आजकल जो परंपरा है, पिंडदान आदि करने की। वह वैदिक शास्त्रों में नहीं है।” बाद में किसी कारण से चल पड़ी। “तो अंतिम संस्कार के बाद मृतक के कल्याण के लिए आप कोई कार्य नहीं कर सकते।” क्योंकि वेदों का यह नियम है, कि “जो व्यक्ति कर्म करता है, उसी को फल मिलता है, दूसरों को नहीं। और यही न्याय भी है।” इस नियम के अनुसार “मृतक व्यक्ति अपने जीवन में जो कर्म कर गया, उन्हीं का फल उसे मिलेगा। हमारे या आपके करने से उसे कुछ नहीं मिलेगा।”
“इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन के कल्याण के लिए जीवित रहते हुए ही सब अच्छे अच्छे काम कर लेने चाहिएं, और दूसरों के भरोसे नहीं रहना चाहिए”, कि “हमारे मरने के बाद दूसरे लोग हमारी मुक्ति करवाएंगे। अथवा वे हमें स्वर्ग दिलाएंगे।”
जो लोग ऐसा मानते हैं, कि “यदि किसी मनुष्य का अंतिम संस्कार और पिंडदान आदि न किया जाए, तो उसकी आत्मा भटकती है।” यह बात भी ठीक नहीं है। “क्योंकि पशु पक्षियों आदि का भी अंतिम संस्कार और पिंडदान नहीं होता। तो क्या सब पशु-पक्षियों की आत्मा भटकती है? बिल्कुल नहीं भटकती।”
“इसलिए ऐसी भ्रांतियों से बचें। अपने जीते जी अच्छे काम करें, ताकि आपका वर्तमान जीवन और भविष्य का जीवन अच्छा एवं सुखमय बने।”
—- “स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक – दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात.”
जो लोग ऐसा मानते हैं, कि “यदि किसी मनुष्य का अंतिम संस्कार और पिंडदान आदि न किया जाए, तो उसकी आत्मा भटकती है।” यह बात भी ठीक नहीं है-स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक, निदेशक – दर्शन योग महाविद्यालय, रोजड़, गुजरात.”

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