गणेश चतुर्थी 2025: तिथि व पूजा मुहूर्त//गणेशचतुर्थी गणेशजी के साधना के लिए सर्वाेत्तम माना गया है। इस १० दिनोें की आराधना से भगवान गणेश जी साधक को सर्व सिद्धि तथा मनोवांछित फल का वरदान देते हैं

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गणेश चतुर्थी 2025: तिथि व पूजा मुहूर्त

शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि की शुरुआत: 26 अगस्त की दोपहर 01 बजकर 56 मिनट से
शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि की समाप्त: 27 अगस्त की दोपहर 03 बजकर 46 मिनट पर।

उदया तिथि के आधार पर 27 अगस्त दिन बुधवार को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाएगा।पूजा मुहूर्त 2025

गणेश पूजन के लिए मध्याह्न मुहूर्त : 27 अगस्त की सुबह 11 बजकर 05 मिनट से दोपहर 01 बजकर 39 मिनट तक।
अवधि : 2 घंटे 34 मिनट
समय जब चन्द्र दर्शन नहीं करना है : 26 अगस्त की दोपहर 01 बजकर 56 मिनट से रात 08 बजकर 27 मिनट तक।
समय जब चन्द्र दर्शन नहीं करना है : 27 अगस्त की सुबह 09 बजकर 28 मिनट से रात 08 बजकर 56 मिनट तक।

गणेश विसर्जन 2025 में कब होगा

इस बार 6 सितंबर 2025, को अनंत चतुर्दशी दिन शनिवार को गणेश विसर्जन किया जाएगा।

।गणेश स्थापना सरल विधि।।

आवाहन मंत्र

गणेश स्थापना विधि में सबसे पहले भगवान गणेश का आह्वान करें और ऐसा करते समय इस मंत्र को कहें।

गजाननं भूतगणादिसेवितम कपित्थजम्बू फल चारू भक्षणं।
उमासुतम शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम।।

आगच्छ भगवन्देव स्थाने चात्र स्थिरो भव।
यावत्पूजा करिष्यामि तावत्वं सन्निधौ भव।।

प्राण प्रतिष्ठा मंत्र
आवाहन के बाद आपको भगवान गणेश जी की प्राण प्रतिष्ठा करनी होगी। प्राण प्रतिष्ठा के लिए ये मंत्र कहें।

अस्यैप्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चार्यम मामेहती च कश्चन।।

आसन मंत्र
अब गणेश जी को आसन पे बैठाना है। आसन के लिए ये मंत्र कहें और गणेश जी को आसन पे बिठाएं।

रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्व सौख्यंकर शुभम।
आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वरः।।

स्नान मंत्र
आसन पर बिठाने के बाद गणेश जी को स्नान करवाना होगा। गणेश जी को जल , दूध, दही , घी , शहद और पंचामृत से स्नान करवाएंगे।

जल स्नान – गणेश जी की मूर्ती को स्नान करवाएं। गणेश जी को स्नान कराते समय इस मंत्र को कहें।

गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदाजलै:।

स्नापितोSसी मया देव तथा शांति कुरुश्वमे।।
दूध स्नान – गणेश जी को दूध से स्नान कराएं। गणेश जी को दूध से स्नान कराते समय इस मंत्र को कहें।

कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवन परम।
पावनं यज्ञ हेतुश्च पयः स्नानार्थं समर्पितं।।

दही स्नान – गणेश जी को दही से स्नान कराएं। गणेश जी को दही से स्नान कराते समय इस मंत्र को कहें।

पयस्तु समुदभूतं मधुराम्लं शक्तिप्रभं।
ध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यतां।।

घी स्नान – गणेश जी को घी से स्नान कराएं। गणेश जी को घी से स्नान कराते समय इस मंत्र को कहें।

नवनीत समुत्पन्नं सर्व संतोषकारकं।
घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।

शहद स्नान – गणेश जी को शहद से स्नान कराएं। गणेश जी को शहद से स्नान कराते समय इस मंत्र को कहें।

तरु पुष्प समुदभूतं सुस्वादु मधुरं मधुः।
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।

पंचामृत स्नान – गणेश जी को पंचामृत से स्नान कराएं। गणेश जी को पंचामृत से स्नान कराते समय इस मंत्र को कहें।

पयोदधिघृतं चैव मधु च शर्करायुतं।
पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।

जल स्नान अंत में शुद्ध जल से स्नान कराएं और स्नान कराते समय इस मंत्र को कहें।

मंदाकिन्यास्त यध्दारि सर्वपापहरं शुभम।
तदिधं कल्पितं देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।

वस्त्र पहनाने का मंत्र
स्नान के बाद अब गणेश जी को वस्त्र पहनाना होगा । गणेश जी को वस्त्र पहनाते समय इस मंत्र को कहें।

सर्वभूषाधिके सौम्ये लोक लज्जा निवारणे।
मयोपपादिते तुभ्यं वाससी प्रतिगृह्यतां।।

जनेऊ मंत्र
वस्त्र के बाद अब गणेश जी को जनेऊ पहनाना होगा । गणेश जी को जनेऊ पहनाते समय इस मंत्र को कहें।

नवभिस्तन्तुभिर्युक्त त्रिगुण देवतामयम |
उपवीतं मया दत्तं गृहाणं परमेश्वर : ||

चन्दन चढ़ाने का मंत्र
जनेऊ के बाद अब गणेश जी के माथे पर चन्दन से टीका लगाएं । टीका लगाते समय इस मंत्र को कहें।

रक्त चन्दन समिश्रं पारिजातसमुदभवम।
मया दत्तं गृहाणाश चन्दनं गन्धसंयुम।।

रोली लगाने का मंत्र
चन्दन के बाद अब गणेश जी को रोली लगाएंगे । गणेश जी को रोली लगाते समय इस मंत्र को कहें।

कुमकुम कामनादिव्यं कामनाकामसंभवाम ।
कुम्कुमेनार्चितो देव गृहाण परमेश्वर्:।।

सिन्दूर चढ़ाने का मंत्र
रोली के बाद अब गणेश जी को सिन्दूर लगाएंगे । गणेश जी को सिन्दूर लगाते समय इस मंत्र को कहें।

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्।
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यतां।।

अक्षत चढ़ाने का मंत्र
सिन्दूर के बाद अब गणेश जी को चावल चढ़ायेंगे । गणेश जी को अक्षत चढ़ाते समय इस मंत्र को कहें।

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठं कुम्कुमाक्तः सुशोभितः।
माया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरः।।

पुष्प चढ़ाने का मंत्र
अक्षत के बाद अब गणेश जी को पुष्प, फूल , माला चढ़ायेंगे । गणेश जी को पुष्प चढ़ाते समय इस मंत्र को कहें।

पुष्पैर्नांनाविधेर्दिव्यै: कुमुदैरथ चम्पकै:।
पूजार्थ नीयते तुभ्यं पुष्पाणि प्रतिगृह्यतां।।

बेल का पत्र चढ़ाने का मंत्र
पुष्प के बाद अब गणेश जी को बेल का पत्र चढ़ायेंगे । गणेश जी को बेल का पत्र चढ़ाते समय इस मंत्र को कहें।

त्रिशाखैर्विल्वपत्रैश्च अच्छिद्रै: कोमलै: शुभै:।
तव पूजां करिष्यामि गृहाण परमेश्वर :।।

दूर्वा चढ़ाने का मंत्र
भगवान गणेश को दूर्वा अत्यंत प्रिय है। गणेश जी को दूर्वा चढ़ाते समय इस मंत्र को कहें।

त्वं दूर्वेSमृतजन्मानि वन्दितासि सुरैरपि।
सौभाग्यं संततिं देहि सर्वकार्यकरो भव।।

आभूषण चढ़ाने का मंत्र
अब भगवान गणेश को आभूषण पहनाएं और इस मंत्र को कहें।

अलंकारान्महा दव्यान्नानारत्न विनिर्मितान।
गृहाण देवदेवेश प्रसीद परमेश्वर:।।

सुगंध तेल चढ़ाने का मंत्र
चम्पकाशोक वकु ल मालती मीगरादिभि:।
वासितं स्निग्धता हेतु तेलं चारु प्रगृह्यतां।।

धूप दिखाने का मंत्र
वनस्पतिरसोदभूतो गन्धढयो गंध उत्तम :।
आघ्रेय सर्वदेवानां धूपोSयं प्रतिगृह्यतां।।

दीप दिखाने का मंत्र
गणेश जी को दीप दिखाते समय इस मंत्र को कहें ।

आज्यं च वर्तिसंयुक्तं वहिन्ना योजितं मया।
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम।।

मिठाई अर्पण का मंत्र
गणेश जी को मिठाई अर्पण करने का मंत्र नीचे दिया गया है।

मिठाई अर्पित करते समय इस मंत्र का जाप करें।

शर्कराघृत संयुक्तं मधुरं स्वादुचोत्तमम।
उपहार समायुक्तं नैवेद्यं प्रतिगृह्यतां।।

आरती
गणेश स्थापना विधि में अंत में गणेश जी की आरती करते हैं।

गणेश जी आरती करने के बाद इस मंत्र को कहें ।

चंद्रादित्यो च धरणी विद्युद्ग्निंस्तर्थव च।
त्वमेव सर्वज्योतीष आर्तिक्यं प्रतिगृह्यताम।।

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।। श्रीमहागणेश पंचरत्नं स्तोत्र ।।

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दिनांक- २७ अगस्त २०२५ श्रीगणेश चतुर्थी पर इस स्तोत्र का जाप अवश्य करें-

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मुदा करात्त मोदकं सदा विमुक्ति साधकं
कलाधरावतंसकं विलासिलोक रक्षकम्।
अनायकैक नायकं विनाशितेभ दैत्यकं
नताशुभाशु नाशकं नमामि तं विनायकम्।।

नतेतराति भीकरं नवोदितार्क भास्वरं
नमत्सुरारि निर्जरं नताधिकापदुद्ढरम्।
सुरेश्वरं निधीश्वरं गजेश्वरं गणेश्वरं
महेश्वरं तमाश्रये परात्परं निरंतरम् ।।

समस्त लोक शंकरं निरस्त दैत्य कुंजरं
दरेतरोदरं वरं वरेभ वक्त्रमक्षरम्।
कृपाकरं क्षमाकरं मुदाकरं यशस्करं
मनस्करं नमस्कृतां नमस्करोमि भास्वरम्।।

अकिंचनार्ति मार्जनं चिरंतनोक्ति भाजनं
पुरारि पूर्व नंदनं सुरारि गर्व चर्वणम्।
प्रपंच नाश भीषणं धनंजयादि भूषणं
कपोल दानवारणं भजे पुराण वारणम्।।

नितांत कांति दंत कांति मंत कांति कात्मजम्
अचिंत्य रूपमंत हीन मंतराय कृंतनम्।
हृदंतरे निरंतरं वसंतमेव योगिनां
तमेकदंतमेव तं विचिंतयामि संततम्।।

महागणेश पंचरत्नमादरेण योऽन्वहं
प्रजल्पति प्रभातके हृदि स्मरन् गणेश्वरम्।
अरोगतामदोषतां सुसाहितीं सुपुत्रतां
समाहितायु रष्टभूति मभ्युपैति सोऽचिरात्।।

।। इति श्री शंकराचार्य विरचितं श्रीमहागणेश पञ्चरत्नं स्तोत्रं संपूर्णम् ।।

श्रीगणेश पंचरत्न स्तोत्र का महात्म्य-
गणेशचतुर्थी गणेशजी के साधना के लिए सर्वाेत्तम माना गया है। इस १० दिनोें की आराधना से भगवान गणेश जी साधक को सर्व सिद्धि तथा मनोवांछित फल का वरदान देते हैं।

प्रातः काल में स्नान ध्यान करके श्री गणेश पंचरत्न स्तोत्र का पाठ करने से जातक की हर मनोकामना पूर्ण होती है। आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा निर्मित इस स्तोत्र के महत्व अनन्य हैं।

श्रीगणेश पंचरत्न स्तोत्र का भावार्थ-
मै भगवान श्री गणेश को विनम्रता के साथ अपने हाथों से मोदक प्रदान करता हुँ जो मुक्ति के प्रदाता हैं। चंद्रमा जिसके सिर पर मुकुट के समान विराजमान हैं जो राजाधिराज हैं जिन्होंने गजासुर नाम के हाथी दानव का वध किया था और सभी लोगोें के पापों का विनाश कर देते हैं ऐसे गणेश जी की पूजा करते हैं।

मैं उस भगवान गणेश जी पर सदा ध्यान अर्पित करता हुँ जो समर्पित नहीं हैं, जो उषा काल की तरह चमकते हैं जिसे सभी राक्षस एवं देवता सम्मान करते हैं, जो भगवानों में सर्वोत्तम हैं।

मैं अपने मन को उस चमकते हुए भगवान गणपति के समक्ष झुकाता हुँ जो संसार के सभी खुशियों के प्रदाता हैं, जिन्होंने गजासुर दानव का वध किया था, जिनका बड़ा पेट है, हाथी के तरह सुन्दर चेहरा है, जो अविनाशी हैं, जो क्षमा को भी क्षमा करते हैं और खुशी और प्रसिद्धि प्रदान करते हैं, और बुद्धि के प्रदाता हैं।

मैं उन हाथी जैसे भगवान की पूजा करता हुँ जो गरीबों का दुख-दर्द दूर करते हैं जो ओम का निवास है, जो भगवान शिव के पहले पुत्र हैं, जो परमपिता परमेश्वर के शत्रुओं का विनाश करने वाले हैं, जो विनाश के समान भयंकर हैं, जो एक गज के समान दुष्ट हैं और धनंजय हैं और सर्प को अपने आभूषण के रूप में धारण करते हैं।

मै सदा उस भगवान को प्रतिबिंबित करता हुँ जिनके चमदार दन्त हैं, जिनके दन्त बहुत सुन्दर हैं, जिनका स्वरूप अमर और अविनाशी है, जो सभी बाधाओं को दूर करते हैं, और जो हमेंशा योगियों के दिल में वास करते हैं।

जो व्यक्ति प्रातःकाल में इस स्तोत्र का पाठ करता है, जो व्यक्ति भगवान गणेश पांच रत्न अपने शुद्ध हृदय में याद करता है तुरंत ही उसका शरीर दाग-धब्बों से मुक्त होकर जीवन स्वस्थ हो जायगा, वह शिक्षा के शिखर को प्राप्त करेगा, लम्बा जीवन शांति और सुख के साथ आध्यात्मिक एवं भौतिक समृद्धि के साथ सम्पन्न हो जायेगा।

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