खूबियां देखकर तो हर कोई प्यार जताएगा….,तलाश उसकी करो जो खामियां देखकर भी साथ ना छोड़ें….भगवान की माया के दो अस्त्र हैं; एक है “आवरण” और दूसरा है “विक्षेप”। माया का आकर्षण बड़ा प्रबल है। माया से मुक्ति मायापति की परमकृपा ही दिला सकती है। इस समय उनकी माया का प्रकोप प्रबलतम है-कृपा शंकर

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खूबियां देखकर तो हर कोई प्यार जताएगा….,
तलाश उसकी करो जो खामियां देखकर भी साथ ना छोड़ें….
भगवान की माया के दो अस्त्र हैं; एक है “आवरण” और दूसरा है “विक्षेप”। माया का आकर्षण बड़ा प्रबल है। माया से मुक्ति मायापति की परमकृपा ही दिला सकती है। इस समय उनकी माया का प्रकोप प्रबलतम है। भगवान वासुदेव मेरी रक्षा करें।
“बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः॥७:१९॥” (श्रीमद्भगवद्गीता)
अर्थात् — बहुत जन्मों के अन्त में (किसी एक जन्म विशेष में) ज्ञान को प्राप्त होकर कि ‘यह सब वासुदेव है’ ज्ञानी भक्त मुझे प्राप्त होता है; ऐसा महात्मा अति दुर्लभ है॥
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इन दिनों माया का आकर्षण बड़ा प्रबल है। भगवान ही मेरी रक्षा कर सकते हैं। परमात्मा की समग्रता ही मेरा इष्ट है। मुझे अपना माध्यम बनाकर भगवान स्वयं ही जिस भी रूप में चाहें, उसी रूप में अपनी उपासना स्वयं करते हैं। कभी वे स्वयं को परमशिव के रूप में, कभी पुरुषोत्तम के रूप में, कभी राम या हनुमान जी के रूप में, कभी भगवती बालासुंदरी या श्रीललितामहात्रिपुरसुंदरी के रूप में, कभी भगवती छिन्नमस्ता के रूप में स्वयं को व्यक्त करते हैं। अपनी साधना भी वे स्वयं ही करते हैं। मेरा अपना कोई पृथक अस्तित्व नहीं है। अब तो इस विषय पर सोचना ही छोड़ दिया है।
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इस जीवन के आरंभ में मैंने अत्यधिक विषमतायें देखीं, लेकिन अब उनका कोई महत्व नहीं हे। पूर्व जन्मों में कोई विशेष अच्छे कर्म नहीं किए थे, यह उनका फल था।
किसी पूर्वजन्म में कोई अच्छे कर्म किए होंगे, उनका फल ही अब परमात्मा के प्रति परमप्रेम और अनुराग के रूप में प्राप्त हो रहा है।
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जो लोग सांसरिक मोह-माया और दुराचार में डूबे हुए हैं, वे स्वयं का उपकार करने के लिये एक बार गरुड़पुराण का प्रेतखंड पढ़ लें और स्वयं उस स्थान का चयन कर लें, जहां उनको जाना है। वहाँ जाना तो पड़ेगा ही, कोई विकल्प नहीं मिलेगा। ॐ तत्सत् !! ॐ ॐ ॐ !!
कृपा शंकर
१ सितंबर २०२५

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