इच्छा पूरी नहीं होती तो क्रोध बढ़ता है और इच्छा पूरी होती है तो लोभ बढ़ता है। इसलिए हर हाल में धैर्य बनाएं रखना ही श्रेष्ठ है। इसी को तृष्णा कहते हैं जो कभी पूरी नहीं होती आगे से आगे बढ़ती ही जाती है। तृष्णा पर विजय पाने के लिए मन को वश में करना पड़ता है और मन को वश में करने के लिए विपश्यना एक उपाय है ।

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रिश्ता होने से रिश्ता नहीं बनता, रिश्ता निभानें से रिश्ता बनता है… दिमाग से बनाएं रिश्ते कुछ समय तक चलते हैं और दिल से बनाएं रिश्ते आखिरी सांस तक चलते हैं! परिवार या संगठन में अगर छोटी-मोटी बातों को बड़ी बनाओगे तो आपका बड़ा परिवार या संगठन, छोटा होता चला जायेगा…!! परिवार या संगठन विश्वास, एक-दूसरे के साथ प्रेम, मैत्री, करुणा की भावना,भाईचारे और अनुशासन से ही चल सकतें हैं ।
नाराज़गी कभी भी इतनी लम्बी नहीं होनी चाहिये कि इंसान गुजर जाये और नाराजगी फिर भी बनी रह जायें। जीवन में शंका और विश्वास दोनों एक साथ नहीं चलते जहां शंका होती है वहां विश्वास हार जाता है और जहां विश्वास हो वहां शंका को हारना ही पड़ता है।

इसलिए कहा भी गया है कि नाराजगी पानी के बुलबुले जैसी होनी चाहिये और जिस पर विश्वास करते हों उस पर शंका नहीं करनी चाहिये या शंका हो भी तो उसे बातचीत से दूर कर लेना चाहिये।
इच्छा पूरी नहीं होती तो क्रोध बढ़ता है और इच्छा पूरी होती है तो लोभ बढ़ता है। इसलिए हर हाल में धैर्य बनाएं रखना ही श्रेष्ठ है। इसी को तृष्णा कहते हैं जो कभी पूरी नहीं होती आगे से आगे बढ़ती ही जाती है। तृष्णा पर विजय पाने के लिए मन को वश में करना पड़ता है और मन को वश में करने के लिए विपश्यना एक उपाय है ।

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