मुखहिं बजावत बेनु धनि यह बृंदावन की रेनु। नंदकिसोर चरावत गैयां मुखहिं बजावत बेनु॥ मनमोहन को ध्यान धरै जिय अति सुख पावत चैन। चलत कहां मन बस पुरातन जहां कछु लेन न देनु, इहां रहहु जहं जूठन पावहु ब्रज बासिनि के ऐनु।सूरदास ह्यां की सरवरि नहिं कल्पबृच्छ सुरधेनु॥