कृष्णदेव राय (1509-1529 ई.) तुलुव वंश के वीर नरसिंह के अनुज थे, जो 8 अगस्त, 1509 ई. को विजयनगर साम्राज्य के सिंहासन पर बैठा। उसके शासन काल में विजयनगर एश्वर्य एवं शक्ति के दृष्टिकोण से अपने चरमोत्कर्ष पर था। कृष्णदेव राय ने अपने सफल सैनिक अभियानों के अन्तर्गत 1509-1510 ई. में बीदर के सुल्तान महमूद शाह को ‘अदोनी’ के समीप हराया। 1510 ई. में उसने उम्मूतूर के विद्रोही सामन्त को पराजित किया। 1512 ई. में कृष्णदेव राय ने बीजापुर के शासक यूसुफ़ आदिल ख़ाँ को परास्त कर रायचूर पर अधिकार किया। तत्पश्चात् गुलबर्गा के क़िले पर अधिकार कर लिया। उसने बीदर पर पुनः आक्रमण कर वहाँ के बहमनी सुल्तान महमूद शाह को बरीद के क़ब्ज़े से छुड़ाकर पुनः सिंहासन पर बैठाया और साथ ही ‘यवन राज स्थापनाचार्य’ की उपाधि धारण की।
1513-1518 ई. के बीच कृष्णदेव राय ने उड़ीसा के गजपति शासक प्रतापरुद्र देव से कम से कम चार बार युद्ध किया और उसे हर बार पराजित किया। चार बार की पराजय से निराश प्रतापरुद्र देव ने कृष्णदेव राय से संधि की प्रार्थना कर उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। गोलकुण्डा के सुल्तान कुली कुतुबशाह को कृष्णदेव राय ने सालुव तिम्म के द्वारा परास्त करवाया। कृष्णदेव राय का अन्तिम सैनिक अभियान बीजापुर के सुल्तान इस्माइल आदिलशाह के विरुद्ध था। उसने आदिल को परास्त कर गुलबर्गा के प्रसिद्ध क़िले को ध्वस्त कर दिया। 1520 ई. तक कृष्णदेव राय ने अपने समस्त शत्रुओ को परास्त कर अपने पराक्रम का परिचय दिया।
पुर्तग़ालियों से मित्रता
अरब एवं फ़ारस से होने वाले घोड़ों के व्यापार, जिस पर पुर्तग़ालियों का पूर्ण अधिकार था, को बिना रुकावट के चलाने के लिए कृष्णदेव राय को पुर्तग़ाली शासक अल्बुकर्क से मित्रता करनी पड़ी। पुर्तग़ालियों की विजयनगर के साथ सन्धि के अनुसार वे केवल विजयनगर को ही घोड़े बेचने के लिए बाध्य थे। कृष्णदेव राय ने पुर्तग़ालियों को भटकल में क़िला बनाने के लिए अनुमति इस शर्त पर प्रदान की, कि वे मुसलमानों से गोवा छीन लेंगे।
शक्तिशाली राजा
कृष्णदेव के समय में विजयनगर सैनिक दृष्टि से दक्षिण का बहुत ही शक्तिशाली राज्य हो गया था। दक्षिणी शक्तियों ने पुराने शत्रुओं को उभारने में तो जल्दबाजी की, लेकिन पुर्तग़ालियों के उभरने से उनके व्यापार को जो ख़तरा पैदा हो रहा था, उस पर उनका ध्यान नहीं गया। नौसेना के गठन में चोल राजाओं और विजयनगर के प्रारम्भिक राजाओं ने बहुत ध्यान दिया था, लेकिन कृष्णदेव ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया। तुलुव वंश के राजा वैष्णव थे, पर सभी सम्प्रदाओं को अपना व्यक्तिगत धर्म पालन की पूर्ण स्वतंत्रता थी। जब पुर्तग़ाली और बहमनी सुल्तान हिन्दुओं पर अत्याचार और उनका मतान्तरण करा रहे थे, तब भी विजयनगर साम्राज्य में उनको समान अधिकार प्राप्त थे। नागरिकों को भी शिक्षा और विभिन्न राजकीय सेवाओं में प्रचुर अवसर प्राप्त थे।
“शस्त्रेण रक्षिते राष्ट्रे शास्त्र चिन्ता प्रवत्र्तते” के अनुसार कन्नड़ में लोकोक्ति है कि राजा नींद में भी सीमाओं को देखा करता है। दक्षिण की विजय में ही राजा कृष्णदेव राय ने ‘शिवसमुद्रम’ के युद्ध में कावेरी नदी के प्रवाह को परिवर्तित करके अपूर्व रण-कौशल का परिचय दिया और उस अजेय जल दुर्ग को जीत लिया था। कृष्णदेव राय ने वीर नृसिंह राय को उनकी मृत्यु शैया पर वचन दिया था कि वे रायचूर, कोण्डविड और उड़ीसा को अपने अधीन कर लेंगे। उस समय गजपति प्रताप रुद्र का राज्य विजयवाड़ा से बंगाल तक फैला था। गजपति के उदयगिरि क़िले की घाटी अत्यंत संकरी थी, अत: एक अन्य पहाड़ी पर मार्ग बनाया गया और चकमा देकर राजा कृष्णदेव राय की सेना ने क़िला जीत लिया था। इसी तरह कोण्डविड के क़िले में गजपति की विशाल सेना थी और क़िले के नीचे से ऊपर चढ़ना असंभव था। राजा कृष्णदेव राय ने वहाँ पहुंचकर मचान बनवाए ताकि क़िले के समान ही धरातल से बाण वर्षा हो सके। इस क़िले में प्रतापरुद्र की पत्नी और राज परिवार के कई सदस्य बन्दी बना लिए गए थे। अंत में सलुआ तिम्मा की कूटनीति से गजपति को भ्रम हो गया कि उसके महापात्र 16 सेनापति कृष्णदेव राय से मिले हुए हैं। अत: उन्होंने कृष्णदेव राय से सन्धि कर ली और अपनी पुत्री जगन्मोहिनी का विवाह उनसे कर दिया। इस तरह मदुरै से कटक तक के सभी क़िले हिन्दू साम्राज्य में आ गए थे। पश्चिमी तट पर भी कालीकट से गुजरात तक के राजागण सम्राट कृष्णदेव राय को कर देते थे।
सुल्तानों के प्रति रणनीति
तत्कालीन समय में बहमनी के सुल्तानों की प्रचण्ड शक्ति के समक्ष अधिक धैर्य और कूटनीति की आवश्यकता थी। गोलकुण्डा का सुल्तान कुली कुतुबशाह क्रूर सेनापति और निर्मम शासक था। वह जहाँ भी विजयी होता था, वहाँ हिन्दुओं का कत्लेआम करवा देता। राजा कृष्णदेव राय की रणनीति के कारण बीजापुर के आदिलशाह ने कुतुबशाह पर अप्रत्याशित आक्रमण कर दिया। सुल्तान कुली कुतुबशाह युद्ध में घायल होकर भागा। बाद में आदिलशाह भी बुखार में मर गया और उसका पुत्र मलू ख़ाँ विजयनगर साम्राज्य के संरक्षण में गोलकुण्डा का सुल्तान बना। गुलबर्गा के अमीर बरीद और बेगम बुबू ख़ानम को कमाल ख़ाँ बन्दी बनाकर ले गया। कमाल ख़ाँ फ़ारस का था। खुरासानी सरदारों ने उसका विरोध किया। तब राजा कृष्णदेव राय ने बीजापुर में बहमनी के तीन शाहजादों को कमाल ख़ाँ से छुड़ाया और मुहम्मद शाह को दक्षिण का सुल्तान बनाया। शेष दो की जीविका बांध दी गई। वहाँ उनको व्यवनराज्य स्थापनाचार्यव् की उपाधि भी मिली। बीजापुर विजय के पश्चात् कृष्णदेव राय कुछ समय वहाँ रहे, किन्तु सेना के लिए पानी की समस्या को देखते हुए वे सूबेदारों की नियुक्ति कर चले आए।
विभिन्न युद्धों में लगातार विजय के कारण अपने जीवन काल में ही राजा कृष्णदेव राय लोक कथाओं के नायक हो गए थे। उन्हें अवतार कहा जाने लगा था और उनके पराक्रम की कहानियाँ प्रचलित हो गयी थीं। रायचूर विजय ने सचमुच उन्हें विश्व का महानतम सेनानायक बना दिया था। सबसे कठिन और भारतवर्ष का सबसे विशाल युद्ध रायचूर के क़िले के लिए हुआ था। कृष्णदेव राय ने वीर नरसिंह राय को वचन दिया था कि वे रायचूर का क़िला भी जीतकर विजयनगर साम्राज्य में मिला लेंगे। यह अवसर भी अनायास ही कृष्णदेव राय के हाथ आया।
भारत के सबसे शक्तिशाली योद्धा व हिन्दू शिरोमणि ‘सम्राट कृष्ण देव राय जी’ की जयंती पर उन्हें शत शत नमन।