अमृत से उत्पन्न हुआ यह लहसुन रूप अमृत- रसायन है,,।
लहसुन के गुण-यह स्निग्ध, उष्णवीर्य, वीर्यवर्धक ,रस में कटु और पचने में भारी होता है।
लहसुन का सेवन करने वाले व्यक्तियों के बाल,दांत ,नाखून, वर्ण एवं बल (ताकत) सहसा कम नही होते।लहसुन का सेवन करने वाले स्त्रियों के स्तन कभी ढीले होकर नीचे नही लटकते ।स्त्रियों का चेहरा,संतान,बल एवं आयु क्षीण नही होता ।उनका यौवन मजबूत् रहता है।
स्त्रियां लहसुन का अधिक सेवन करके भी शुद्ध रहती है तथा उन्हें सेक्स से उत्पन्न होने वाले रोग नही होते । लहसुन का सेवन करने से स्त्रियों के कमर,श्रोणि तथा अन्य अंगों के रोगों के वशीवर्ती नहीं होती है अर्थात उन्हें कमर, श्रोणि एवं अन्य अंगों के रोग नहीं होते हैं। स्त्रियां कभी बांझ नही होती।
लहसुन के सेवन से पुरुष भी मजबूत ,मेधावी दीर्घायु एवं सुंदर संतान युक्त होता है ,मैथुन (सेक्स) में जल्दी थकता नहीं तथा इसके प्रयोग से शुक्र की भी वृद्धि होती है। जितनी भी स्त्रियों से वह संभोग करता है सबको गर्भस्थति हो जाती है तथा गर्भ भी नीलकमल की सुगंधी वाला तथा पद के वर्ण का होता है।
इसके सेवन से शरीर मृदु एवं कंठ (गला) मधुर(सुरीला) हो जाता है ।ग्रहणी के दोषों की शांति होती है तथा जठरग्नि बढ़ती है।
किन रोगों (बिमारियों)में लहसुन का प्रयोग करना चाहिए-
अस्थिच्युत(dislocation),हड्डी टूटने में एवं अन्य हड्डी के रोगों में,सम्पूर्ण वात रोग में,आर्तव सबंधी रोग,वीर्य संबधी रोग,खांसी,कुष्ठ(त्वचा) रोग,गुल्म,सफेद दाग,खूजली,विस्फोटक,चेहरा का प्रकृतिक रंग बदल गया हो,तिमिर(नेत्र रोग),श्वास ,night blindness, कम भोजन करने वाला,पुराना बुखार में,स्त्रोतों का बंद हो जाना,पथरी,मूत्रकृच्छ(uti),भगंदर, प्रदर,प्लीहारोग,राजयक्षमा(tb),पंगुता(चलने में कठिनाई),ह्रदय रोग में (chlostrol बढ़ने पर),वातरक्त(gout) रोगों प्रयोग करना चाहिए ।
इसके अलावा memory power ,अग्नि एवं ताकत बढ़ाने के लिए एक लहसुन का प्रयोग करना चाहिए।लहसुन रसायन भी है।इस(लहसुन) से उपरोक्त रोगों से जल्दी ही रोगमुक्त हो जाता है तथा उसके बाद शरीर की वृद्धि होती है।
किन रोगों में लहसुन का प्रयोग नहीं करना चाहिए-
कफज एवं पित्तज रोग, अतिवर्द्धवस्था,अग्निमांद्य, गर्भिणी(गर्भवती महिला),नवजात शिशु,नया बुखार, अतिसार, कामला(jaundice),अर्श(piles),कब्ज़, गले एवं मुख का रोग(मुंह में छाले ,घाव आदि),जिसने अभी उल्टी किया हो ,जिसको अभी लूज मोशन हुआ हो,जिसने शिरोविरेचन लिया है,जिसको प्यास बहुत लगती हो,जिसको उल्टी की बीमारी हो,जिसको हिचकी और श्वास का रोग अधिक हो,जिसे अनुवाशन और निरुहबस्ती दिया गया हो ऐसे अवस्था मे लहसुन का सेवन करना नही करना चाहिये।
नोट:-उपरोक्त रोगों को छोड़कर जिनकी पाचन शक्ति एवं बल(ताकत) जिसकी क्षीण नही है उन सबको लहसुन का प्रयोग किया जा सकता है।हेमंत और शिशिर (ठंडियो के मौसम में) लहसुन का प्रयोग करना चाहिए ।लहसुन छिलके रहित प्रयोग करना चाहिए।
लहसुन के पूर्ण रूप से पके हुए कंद को लेकर अच्छे से छील ले और फाड़कर उनमें से अंकुरो (जो हर -से होते हैं )उनको निकाल दे तथा लहसुन की बदबू कम करने के लिए रात को छाछ में डाल कर रख दीजिये और सुबह निकल ले तथा धोकर सिलबट्टे पर पीसकर चटनी बना ले तत्पश्चात उसमें निम्नलिखित वस्तुओं का पांचवा भाग चुर्ण मिला लीजिये काला नमक, अजवाइन ,घी में भुनी हींग, सेंधा नमक ,सौठ, काली मिर्च,पिपली तथा जीरा (इन्हें भी घी में भून लें लेना चाहिए)को समान भाग में लेकर चुर्ण तथा लहसुन की चटनी को एक में मिलाकर रख लीजिये।
तत्पश्चात इसको 10 से 15 ग्राम की मात्रा में सुबह खाली पेट खानी चाहिए अथवा रोगी की पाचन शक्ति ,शारीरिक बल, ठंडी- गर्मी तथा वात -पित्त -कफ का विचार करके मात्रा को घटाया या बढ़ाया भी जा सकता है ।इसे खाकर पीछे से अरंड की जड़ का काढ़ा पीना चाहिए इसी प्रकार प्रतिदिन(रोज) सेवन करने से सर्वांगवात,एकांग्वात(लकवा का एक प्रकार),अर्धांगवात (मुंह का लकवा),हिस्टीरिया, अपस्मार(मिर्गी), उन्माद
(पागलपन),उरुस्तम्भ,गृहसी(सायटिका),और छाती, पीठ, कमर ,पसली तथा पेट का दर्द तथा कृमि रोग को नष्ट करता है।इस दवा का सेवन के समय मनुष्य को अजीर्ण ना होने दे, धूप, क्रोध, अधिक जल, तथा दूध तथा गुड़ का अवश्य त्याग देवे। खट्टे पदार्थ, मूँग दाल ,मसूर दाल आदि और हल्का व सुपाच्य भोजन इच्छा अनुसार खाया जा सकता है।।।।।