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हाँ, जंगल में पाए जाने वाले कई पेड़-पौधे औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं, जैसा कि चरक की चिकित्सा पद्धति में भी बताया गया है।
यहाँ कुछ उदाहरण दिए गए हैं:
नीम:
नीम के पेड़ की छाल, पत्तियां और बीज कई बीमारियों के इलाज में उपयोगी होते हैं, जैसे कि बुखार, संक्रमण और त्वचा संबंधी विकार.
तुलसी:
तुलसी के पत्तों को कई स्वास्थ्य समस्याओं के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जैसे कि सर्दी-खांसी, तनाव और पाचन संबंधी समस्याएं.
गिलोय:
गिलोय को आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण औषधि माना जाता है, जो कई बीमारियों के लिए फायदेमंद है.
अश्वगंधा:
अश्वगंधा एक ऐसी जड़ी-बूटी है जो तनाव और थकान को कम करने में मदद करती है.
अदरक:
अदरक का उपयोग सर्दी-खांसी, उल्टी और पेट दर्द के इलाज में किया जाता है.
हल्दी:
हल्दी में एंटी-ऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो कई बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं.
अमल:
आंवला को विटामिन सी का एक अच्छा स्रोत माना जाता है, जो इम्युनिटी को बढ़ाता है.
हरड़:
हरड़ को “औषधियों का राजा” माना जाता है, क्योंकि यह शरीर में तीनों दोषों – वात, पित्त और कफ को संतुलित रखता है.
अशोक:
अशोक के पेड़ की छाल और फूल का उपयोग कई बीमारियों के इलाज में किया जाता है, जैसे कि मासिक धर्म की अनियमितता और रक्तस्राव.
चरक की चिकित्सा पद्धति:
चरक संहिता, प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसमें विभिन्न बीमारियों और उनके इलाज के लिए प्राकृतिक औषधियों का वर्णन किया गया है. चरक ने जंगलों में पाए जाने वाले पौधों को औषधियों के रूप में इस्तेमाल करने की सलाह दी है.
निष्कर्ष:
जंगल में पाए जाने वाले पेड़-पौधे औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं, और चरक की चिकित्सा पद्धति में भी इन पौधों को औषधियों के रूप में इस्तेमाल करने की बात कही गई है.

प्राचीन वाङ्मय के परिशीलन से ज्ञात होता है कि उन दिनों ग्रंथ या तंत्र की रचना शाखा के नाम से होती थी। जैसे कठ शाखा में कठोपनिषद् बनी। शाखाएँ या चरण उन दिनों के विद्यापीठ थे, जहाँ अनेक विषयों का अध्ययन होता था। अत: संभव है, चरकसंहिता का प्रतिसंस्कार चरक शाखा में हुआ हो।

चरकसंहिता में पालि साहित्य के कुछ शब्द मिलते हैं, जैसे अवक्रांति, जेंताक (जंताक – विनयपिटक), भंगोदन, खुड्डाक, भूतधात्री (निद्रा के लिये)। इससे चरकसंहिता का उपदेशकाल उपनिषदों के बाद और बुद्ध के पूर्व निश्चित होता है। इसका प्रतिसंस्कार कनिष्क के समय 78 ई. के लगभग हुआ।

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