नेता बिना सोचे-समझे ऐसे बयान दे देते जो हर लिहाज से आपत्तिजनक होते..!!
जनता पर सवाल उठाने के बजाय जरूरत है कि नेता अपनी और पार्टियों की ओर झांकें..!!
पिछले कुछ दशक से ऐसा लगता है कि जो नेता आम लोगों के समर्थन से राजनीति, सत्ता और तंत्र में अपनी जगह बनाते हैं व बाद में किसी समस्या के लिए जनता को ही कठघरे में खड़ा करना शुरू कर देते हैं!आए दिन अलग-अलग पार्टियों से जुड़े नेता बिना सोचे-समझे ऐसे बयान दे देते हैं जो कई लिहाज से आपत्तिजनक होते है! पद या सत्ता का सुरक्षित घेरा मिल जाने के बाद आम लोगों की अहमियत को नकार देना और दुखी या अपमानित करने वाले बयान देना एक बड़ी राजनीतिक विडंबना है! हाल ही में एक राज्य के जनतमंत्री ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि लोगों को मांगने की आदत पड़ गई है,अब तो व सरकार से भीख मांगने के भी आदी होने लगे हैं!खबरों के मुताबिक उन्होंने यह भी कहा कि हमेशा लेने के बजाय देने की मानसिकता विकसित करें। संबंधित मंत्री का इस तरह का बयान वैसे समय में आया है, जब देश भर में सरकारों द्वारा जनता को दी जाने वाली मुफ्त की सौगातों की होड़ बहस के घेरे में है!ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि चुनावी जीत हासिल करने के लिए सरकार बनने पर कई तरह की सुविधाएं और सेवाएं मुफ्त मुहैया कराने का आखिर क्या औचित्य है!सवाल है कि जिस नेता को मुफ्त सुविधाओं पर आपत्ति है क्या व देश की अन्य पार्टियों के साथ-साथ अपनी पार्टी के सामने ईमानदारी से यह सवाल रख सकेंगे कि व चुनावों में जीत के लिए मुफ्त की सौगात की लोकलुभावन घोषणाएं क्यों करती हैं ? जनता आज अगर सरकारों की ओर से कोई चीज या सेवा मुफ्त में मिलने की उम्मीद करने लगी है, तो इसके पीछे मुख्य कारण यही है कि बीते कुछ वर्षों से चुनावी जीत के लिए नेताओं के मुफ्त की सौगात देने के वादे हैं! ऐसे में केवल जनता पर सवाल उठाने के बजाय जरूरत है कि नेता अपनी और पार्टियों की ओर झांकें, जो जनता को रोजगार देने या उन्हें सक्षम बनाने की वकालत करने के बजाय मुफ्त सुविधाएं और तोहफे देने की होड़ में लगी हैं।