जरा सोचिये। किसी के पास अस्सी करोड़ की अकूत दौलत हो। 400 से ज्यादा पुस्तकें लिख चुका हो। बेटा बड़ा बिजनेसमैन हो। और बेटी भी सुप्रीम कोर्ट में बड़ी वकील हो। लेकिन इसके बावजूद बुढ़ापे की जिंदगी महादेव की काशी के किसी कुष्ठ आश्रम में गुजारनी पड़े। तो भला उस बुजुर्ग से अभागा कौन होगा। जिसने अपनी पूरी जिंदगी बेटे बेटियों के लिए खपा दी। उन्हें अपने पैरों पर खड़ा किया। और बदले में उसे क्या मिला। काशी का कुष्ठ आश्रम। कुछ ऐसी ही है देश के दिग्गज लेखक श्रीनाथ खंडेलवाल की दर्द भरी कहानी। जिन्हें लोग एसएन खंडेलवाल के नाम से भी जानते हैं।पद्म सम्मान लेने से इंकार कर दिया। पता है क्यों। क्योंकि उनका मानना था कि उनके पास कोई डिग्री नहीं है।और दसवीं फेल हैं।
जिस काशी में जन्म हुआ। उसी काशी में जिंदगी का आखिरी दौर गुजार रहे लेखक एसएन खंडेलवाल पुरानी काशी और बदलती काशी के गवाह भी रहे हैं। लेकिन जब उनसे पूछा गया कि काशी में कितना बदलाव आया है। तो खंडेलवाल ने बड़े ही बेबाकी से जवाब दिया। हम नहीं बदले तो हमारी नजर में कुछ नहीं बदला। कल भी वेद पाठ होते थे। आज भी हो रहे हैं। बस आधुनिकता बदल गई है। लोग अब धोती की जगह पैंट पहन कर पूजा कर रहे हैं।
कभी करोड़ों की संपत्ति के मालिक रहे एस एन खंडेलवाल आज इसी छोटे से कमरे में सिमट कर रह गये हैं। लेकिन इसके बावजूद वो बड़े ही सुकून के साथ रह रहे हैं। और वृद्धाश्रम में मिलने वाली सीमित सुविधाओं के बारे में ठहाके लगाते हुए कहते हैं जब नरक में जाएंगे तो वहां तो और भी कष्ट होगा। जब उसको झेलना है तो ये क्या है मेरे लिये।
18 पुराण। 21 उपपुराण और तंत्र की करीब चार सौ से ज्यादा किताबें लिखने वाले एसएन खंडेलवाल का बुढ़ापे की इस उम्र में बिजनेसमैन बेटे ने साथ छोड़ दिया। सुप्रीम कोर्ट में वकील बेटी ने भी साथ नहीं दिया। साथ दिया तो। महादेव की काशी ने दिया। शायद यही वजह है कि अपने ही परिवार से ठुकराए जाने के बावजूद दिग्गज लेखक एस एन खंडेलवाल आज जिंदादिली के साथ कभी मुस्कुराते हुए। तो कभी ठहाके लगाते हुए अपनी जिंदगी के किस्से बताते हैं। शायद इसीलिये महादेव की काशी के बारे में कहा जाता है। जिसने भी छुआ वो स्वर्ण हुआ, सब कहें मुझे मैं पारस हूं, मेरा जन्म महाश्मशान मगर मैं जिंदा शहर बनारस हूं।
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