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गणपति विसर्जन

मान्यता है कि गणेश जी ने ही महाभारत ग्रंथ को लिखा था। महर्षि वेदव्यास ने गणेशजी को लगातार 10 दिन तक महाभारत की कथा सुनाई और गणेश जी ने 10 दिनों तक इस कथा को हूबहू लिखा। 10 दिन के बाद वेदव्यासजी ने जब गणेशजी को छुआ तो देखा कि उनके शरीर का तापमान बहुत बढ़ चुका था। वेदव्यासजी ने उन्हें तुरंत कुंड में ले जाकर उनके शरीर के तापमान को शांत किया। तभी से मान्यता है कि गणेशजी को शीतल करने के लिए उनका विसर्जन किया जाता है।

विसर्जन का नियम इसलिए है कि मनुष्य यह समझ ले कि संसार एक चक्र के रूप में चलता है भूमि पर जिसमें भी प्राण आया है वह प्राणी अपने स्थान को फिर लौटकर जाएगा और फिर समय आने पर पृथ्वी पर लौट आएगा। विसर्जन का अर्थ है मोह से मुक्ति, आपके अन्दर जो मोह है उसे विसर्जित कर दीजिए। आप बप्पा की मूर्ति को बहुत प्रेम से घर लाते हैं उनकी छवि से मोहित होते हैं लेकिन उन्हें जाना होता है इसलिए मोह को उनके साथ विदा कर दीजिए और प्रार्थना कीजिए कि बप्पा फिर लौटकर आएं, इसलिए कहते हैं गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ।

सभी देवी-देवताओं का विसर्जन जल में होता है। जल को नारायण रूप माना जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है संसार में जितनी मूर्तियाँ इनमें देवी-देवता और प्राणी शामिल हैं, उन सभी में मैं ही हूँ और अन्त में सभी को मुझमें ही मिलना है। जल में मूर्ति विसर्जन से यह माना जाता है कि जल में घुलकर परमात्मा अपने मूल स्वरूप से मिल गए। यह परमात्मा के एकाकार होने का प्रतीक भी है।

जल का संबंध ज्ञान और बुद्धि से भी माना गया है जिसके कारक स्वयं भगवान गणेश हैं। जल में विसर्जित होकर भगवान गणेश साकार से निराकार रूप में घुल जाते हैं। जल को पंच तत्वों में से एक तत्व माना गया है जिनमें घुलकर प्राण प्रतिष्ठा से स्थापित गणेश की मूर्ति पंच तत्वों में सामहित होकर अपने मूल स्वरूप में मिल जाती है।

हर साल अनंत चतुर्दशी का दिन बप्पा के भक्तों के लिए बेहद खास होता है। गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चतुर्दशी तक पूरे 10 दिन तक भक्त गणपति को अपने घरों में बैठाते हैं। इस दौरान घरों में लगातार विधिवत पूजा पाठ चलता रहता है। हालांकि कई बार लोग वक्त की कमी के चलते गणपति को डेढ़ दिन, 4 दिन, 5 दिन या 7 वें दिन में ही विसर्जित कर देते हैं। लेकिन गणपति विसर्जन का उपयुक्त समय स्थापना के 11 वें दिन अनंत चतुर्दशी का होता है। गणपति विसर्जन से जुड़े नियम और विधि इस प्रकार हैं –

 *गणपति विसर्जन की पूजा* 

विसर्जन के दिन परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ मिलकर आरती करनी चाहिए। आरती में गणपति को 5 चीजें- दीप, फूल, धूप, सुगंध और नैवेद्य आदि चढ़ाए जाते हैं। आरती करने के बाद भगवान गणेश को भोग लगाया जाता है। भगवान को भोग लगाने के बाद प्रसाद को परिवार के सभी सदस्यों के बीच बांट दिया जाता है। आरती और प्रसाद के बाद परिवार का एक सदस्य एकदम धीरे-धीरे गणपति की मूर्ति को थोड़ा आगे बढ़ाता है। ऐसा घर से निकलने के 5 से 10 मिनट पहले किया जाता है। ऐसा करना गणपति को इशारा करता है कि अब विसर्जन का समय आ गया है।

    *गणपति विसर्जन के नियम* 

गणपति विसर्जन से पहले विधिवत पूजा पाठ करके बप्पा को मोदक का भोग लगाएँ। इसके बाद गणपति को नए वस्त्र पहनाएँ। इसके बाद एक रेशमी कपड़े में मोदक, थोड़े पैसे, दूर्वा घास और सुपारी रखकर उसमें गाँठ लगा दें। इस पोटली को बप्पा के साथ ही बाँध दें। आरती के समय घऱ के सब लोग मिलकर गणेश जी की आरती गाते हुए ‘गणपति बाप्पा मोरया’ के जयकारे लगाएँ।

इसके बाद अपने दोनों हाथ जोड़कर अपने मन में बप्पा से क्षमा प्रार्थना करते हुए अनजाने में हुई गलती के लिए क्षमा माँग लें। अब किसी पवित्र जलाशय में पूजा की सभी सामग्री के साथ गणपति का विसर्जन कर दें।

विसर्जन के नियम है कि जल में देवी-देवताओं की प्रतिमा को डुबोया जाता है। इसके लिए श्रद्धालु नदी, तालाब, कुण्ड, सागर में प्रतिमा को विसर्जित कर सकते हैं। महानगरों में जहाँ नदी, तालाब तक जाना कठिन होता है वहाँ लोग जमीन खोदकर उसमें जल भरकर प्रतिमा को विसर्जित कर लेते हैं। अगर आपके पास छोटी प्रतिमा है तो घर के किसी बड़े बर्तन में भी प्रतिमा विसर्जित कर सकते हैं। बस ध्यान रखना चाहिए कि इस जल में पैर न लगे। इस जल को गमले में भी डाल सकते हैं।

     *गणपति बप्पा मोरया* 

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